अध्याय 15 श्लोक 8

अध्याय 15 श्लोक 8

शरीरम्, यत्, अवाप्नोति, यत्, च, अपि, उत्क्रामति, ईश्वरः,
गृृहीत्वा, एतानि, संयाति, वायुः, गन्धान्, इव, आशयात्।।8।।

अनुवाद: (वायुः) हवा (गन्धान्) गन्धको (आशयात्) ले जाती है क्योंकि गंध की वायु मालिक है (इव) इसी प्रकार (ईश्वरः) सर्व शक्तिमान प्रभु (अपि) भी इस जीवात्मा को (एतानि) इन पाँच इन्द्रियों व मन सहित सुक्ष्म शरीर (गृहीत्वा) ग्रहण करके जीवात्मा (यत्) जिस पुराने शरीरको (उत्क्रामति) त्याग कर (च) और (यत्) जिस नए (शरीरम्) शरीरको (अवाप्नोति) प्राप्त होता है उसमें संस्कारवश (संयाति) ले जाता है। गीता अध्याय 18 श्लोक 61 में भी प्रमाण है। (8)