Chapter 7 Verse 3

Chapter 7 Verse 3

Manushyaanaam’, sahastreshu, kashchit’, yatati, siddhye,
Yattaam’, api, siddhaanaam’, kashchit’, mam’, vetti, tatvatH ||3||

Translation: (Sahastreshu) thousands (manushyaanaam’) among individuals (kashchit’) scarcely one (siddhye) for attainment of God (yatati) strives (yattaam’) those who strive (siddhaanaam’) among yogis (api) also (kashchit’) rarely some one (mam’) me (tatvatH) in essence i.e. in real form (vetti) knows. (3)

Translation

Among thousands of individuals, scarcely some one strives for attainment of God, and among those yogis also who strive, there is seldom one who knows me in essence i.e. in real form.

Meaning

The meaning of this Shlok 3 is that God, the giver of the knowledge of the Vedas, is saying that among thousand people, scarcely one worships God. Amongst those who worship, seldom one knows me in essence. Kaal God is saying that those who worship God are very few. Those who are doing worship, they follow arbitrary behaviour (way of worship) i.e. they do scripture-opposed worship which is useless (in Gita Adhyay 16 Shlok 23). Those who worship me, amongst them also, seldom does one worship me according to the Vedas i.e. comprehending the Vedas with his own intellect. He does not worship other gods-goddesses etc; only worships me, Brahm. He is a knowledgeable soul. This Shlok 3 has connection with Adhyay 7 Shlok 17 to 19.


मनुष्याणाम्, सहस्त्रोषु, कश्चित्, यतति, सिद्धये,
यतताम्, अपि, सिद्धानाम्, कश्चित्, माम्, वेत्ति, तत्त्वतः।।3।।

अनुवाद: (सहस्त्रोषु) हजारों (मनुष्याणाम्) मनुष्योंमें (कश्चित्) कोई एक (सिद्धये) प्रभु प्राप्तिके लिये (यतति) यत्न करता है (यतताम्) यत्न करनेवाले (सिद्धानाम्) योगियोंमें (अपि) भी (कश्चित्) कोई एक (माम्) मुझको (तत्त्वतः) तत्वसे अर्थात् यथार्थरूपसे (वेत्ति) जानता है। (3)

केवल हिन्दी अनुवाद: हजारों मनुष्योंमें कोई एक प्रभु प्राप्तिके लिये यत्न करता है यत्न करनेवाले योगियोंमें भी कोई एक मुझको तत्वसे अर्थात् यथार्थरूपसे जानता है।

भावार्थ:- इस श्लोक 3 का भावार्थ यह है कि वेद ज्ञान दाता प्रभु कह रहा है कि हजार व्यक्तियों में कोई एक परमात्मा की साधना करता है। उन साधना करने वालों में कोई एक ही मुझे तत्व से जानता है। काल भगवान कह रहा है कि परमात्मा को भजने वाले बहुत कम है। जो साधना कर रहे हैं वे मनमाना आचरण(पूजा) अर्थात् शास्त्राविधि रहित पूजा करते है जो व्यर्थ है। (गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में) जो मुझे भजते हैं उन में भी कोई एक ही वेदों अनुसार अर्थात् वेदों को अपनी बुद्धि से समझ कर मेरी साधना करता है। वह अन्य देवी-देवता आदि की पूजा नहीं करता केवल एक मुझ ब्रह्म की पूजा करता है वह ज्ञानी आत्मा है। इस श्लोक 3 का सम्बन्ध अध्याय 7 श्लोक 17 से 19 तक से है।