Chapter 9 Verse 4

Chapter 9 Verse 4

Mya, tatam’, idam’, sarvam’, jagat’, avyaktmoortina,
Matsthaani, sarvbhootaani, na, ch, aham’, teshu, avasthitH ||4||

Translation: (Mya) by me and (avyakt moortina) by the invisible Supreme God who has a form (idam’) this (sarvam’ jagat’) whole world (tatam’) expanded, is surrounded i.e. has been created by the Supreme God and in reality He only is the controller. (Ch) and (matsthaani) under me (sarvbhootaani) all the living beings (teshu) in them (aham’) I (na, avasthitH) am not situated. (4)

Translation

By me and the invisible Supreme God who has a form, this whole world is expanded, is surrounded i.e. it has been created by the Supreme God only and in reality He only is the controller. And all the living beings who are under me, I am not situated in them. Because Kaal i.e. Jyoti Niranjan lives separately in his twenty-first brahmand and in every brahmand also lives secretly and separately in MahaBrahma, MahaVishnu and MahaShiv form. Its evidence is also in Gita Adhyay 7 Shlok 12. In Gita Adhyay 13 Shlok 17 and Adhyay 18 Shlok 61 also there is this evidence. It is said that the Supreme/Complete God is specially situated in everyone’s heart. He makes all the living beings revolve around like a machine.


मया, ततम्, इदम्, सर्वम्, जगत्, अव्यक्तमूर्तिना,
मत्स्थानि, सर्वभूतानि, न, च, अहम्, तेषु, अवस्थितः।।4।।

अनुवाद: (मया) मेरे से तथा (अव्यक्त मूर्तिना) अदृश साकार परमेश्वर से (इदम्)यह (सर्वम् जगत्)सर्व संसार (ततम्) विस्तारित व घेरा हुआ है अर्थात् पूर्ण परमात्मा द्वारा ही रचा गया है तथा वही वास्तव में नियन्तता है। (च) तथा (मत्स्थानि) मेरे अन्तर्गत (सर्वभूतानि) जो सर्व प्राणी हैं (तेषु) उनमें (अहम्) मैं (न अवस्थितः) स्थित नहीं हूँ। क्योंकि काल अर्थात् ज्योति निरंजन ब्रह्म अपने इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में अलग से रहता है तथा प्रत्येक ब्रह्मण्ड में भी महाब्रह्मा, महाविष्णु, महाशिव रूप में भिन्न गुप्त रहता है। इसी का प्रमाण गीता अध्याय 7 श्लोक 12 में भी है। गीता अध्याय 13 श्लोक 17 में तथा अध्याय 18 श्लोक 61 में भी यही प्रमाण है कहा है कि पूर्ण परमात्मा प्रत्येक प्राणी के हृदय में विशेष रूप से स्थित है। वह सर्व प्राणियों को यन्त्रा की तरह भ्रमण कराता है। (4)