Chapter 3 Verse 32

Chapter 3 Verse 32

Ye, tu, etat, abhyasooyantH, na, anutishthanti, me, matam,
Sarvgyanvimoodan, taan, viddhi, nashtaan, achetasH ||32||

Translation: (Tu) but (ye) those who (abhyasooyantH) while blaming/attributing fault (me) mine (etat) this (matam) opinion i.e. principle (na, anutishthanti) do not follow (taan) those (achetasH) fools; you (sarvgyanvimoodan) enamoured in all knowledge and (nashtaan) destroyed only (viddhi) consider. (32)

Translation

But those who blame and do not follow this opinion i.e. principle of mine, consider those fools to be enamoured in all knowledge and destroyed only.

Important

In Gita Adhyay 3 Shlok 25 to 29, has given a detailed account of the opinion i.e. principle told by himself. He has expressed his opinion in Adhyay 3 Shlok 25 to 29 that if an educated person is doing sadhna abandoning the injunctions of the scriptures and he finds an uneducated person doing scripture-based sadhna, then he should not confuse him, rather, should himself also accept his way of worship. After taking initiation from a Complete Saint, should get his welfare done. This evidence is also in Gita Adhyay 13 Shlok 11.


ये, तु, एतत्, अभ्यसूयन्तः, न, अनुतिष्ठन्ति, मे, मतम्,
सर्वज्ञानविमूढान्, तान्, विद्धि, नष्टान्, अचेतसः।।32।।

अनुवाद: (तु) परंतु (ये) जो (अभ्यसूयन्तः) दोषारोपण करते हुए (मे) मेरे (एतत्) इस (मतम्) मत अर्थात् सिद्धान्त के (न, अनुतिष्ठन्ति) अनुसार नहीं चलते हैं (तान्) उन (अचेतसः) मूर्खोंको तू (सर्वज्ञानविमूढ़ान्) सम्पूर्ण ज्ञानोंमें मोहित और (नष्टान्) नष्ट हुए ही (विद्धि) जान। (32)

विशेष:- गीता अध्याय 3 श्लोक 25 से 29 में अपने द्वारा बतायें गए मत अर्थात् सिद्धान्त का विस्तृृत वर्णन किया है। 3 श्लोक 25 से 29 में विचार व्यक्त किए हैं कि शिक्षित व्यक्ति यदि शास्त्रा विधि त्याग कर साधना कर रहे हैं और उन्हें कोई अशिक्षित शास्त्रा अनुसार साधना करता हुआ मिले तो उसे विचलित न करें अपितु स्वयं भी उनकी साधना को स्वीकार करे। पूर्ण सन्त से उपदेश प्राप्त करके अपना कल्याण कराऐं। यही प्रमाण गीता अध्याय 13 श्लोक 11 में भी है।