Na, anyam’, gunebhyaH, kartaarm’, yadaa, drshta, anupashyati,
GunebhyaH, ch, param’, vetti, mad’bhaavam’, saH, adhigachchhati ||19||
Translation: (Yadaa) when (drshta) a discerning devotee (gunebhyaH) other than the three gunas – Brahma, Vishnu and Shiv (anyam’) anyone else (kartaarm’) God (na) not (anupashyati) sees (saH) he (ch) and (gunebhyaH) the three gunas i.e. Rajgun-Brahma, Satgun-Vishnu and Tamgun-Shiv ji (param’) the Purna Parmatma other than (vetti) knows in essence (mad’bhaavam’) viewpoints, in accordance with my opinion (adhigachchhati) attains. (19)
When a discerning devotee does not see anyone else as the God other than the three gunas – Brahma, Vishnu and Shiv, and knows the Supreme God other than the three gunas – Rajgun-Brahma, Satgun-Vishnu and Tamgun-Shiv ji in essence, he acquires the viewpoints that are in accordance with my opinion (mat’).
The meaning of Shlok 19 is that a devotee who does bhakti of the three Gods, does not believe in anyone else, and also realizes this that in reality one should only do bhakti of the Supreme God, he sooner or later accepts the true bhakti.
न, अन्यम्, गुणेभ्यः, कर्तारम्, यदा, द्रष्टा, अनुपश्यति,
गुणेभ्यः, च, परम्, वेत्ति, मद्भावम्, सः, अधिगच्छति।।19।।
अनुवाद: (यदा) जिस समय (द्रष्टा) विवेक शील साधक (गुणेभ्यः) तीनों गुणों - ब्रह्मा, विष्णु, शिव से (अन्यम्) अन्य को (कर्तारम्) करतार अर्थात् भगवान (न) नहीं (अनुपश्यति) देखता (सः) वह (च) और (गुणेभ्यः) तीनों गुणों अर्थात् रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तम्गुण शिव जी से (परम्) दूसरे पूर्ण परमात्मा को (वेत्ति) तत्वसे जानता है (मद्भावम्) वह मेरे मता अनुकूल विचारों को (अधिगच्छति) प्राप्त होता है। (19)
भावार्थ - श्लोक 19 का भावार्थ है कि जो साधक भक्ति तो तीनों प्रभुओं की ही करता है, अन्य को नहीं मानता तथा यह भी समझ लेता है कि वास्तव में भक्ति तो परमेश्वर की ही करनी चाहिए तो वह कभी न कभी सत्य भक्ति स्वीकार कर लेता है।