गीता अध्याय 1 | Gita Adhyay 1

श्लोक |Shlokas

अध्याय 1 का श्लोक 1

(धृतराष्ट्र उवाच)

धर्मक्षेत्रो, कुरुक्षेत्रो, समवेताः, युयुत्सवः,
मामकाः, पाण्डवाः, च, एव, किम्, अकुर्वत, सज्य।।1।।

अनुवाद: (सज्य) हे संजय! (धर्मक्षेत्रो) धर्मभूमि (कुरुक्षेत्रो) कुरुक्षेत्रमें (समवेताः) एकत्रित (युयुत्सवः) युद्धकी इच्छावाले (मामकाः) मेरे (च) और (एव) यहाँ (पाण्डवाः) पाण्डुके पुत्रोंने (किम्) क्या (अकुर्वत) किया? (1)

हिन्दी: हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित युद्धकी इच्छावाले मेरे और यहाँ पाण्डुके पुत्रों ने क्या किया? (1)

अध्याय 1का श्लोक 2

(सज्य उवाच)

दृष्टा तु, पाण्डवानीकम्, व्यूढम्, दुर्योधनः, तदा,
आचार्यम्, उपसग्म्य, राजा, वचनम्, अब्रवीत्।।2।।

अनुवाद: (तदा) उस समय (राजा) राजा (दुर्योधनः) दुर्योंधनने (व्यूढम्) व्यूहरचनायुक्त (पाण्डवानीकम्) पाण्डवोंकी सेनाको (दृष्टा) देखकर (तु) और (आचार्यम्) द्रोणाचार्यके (उपसग्म्य) पास जाकर यह (वचनम्) वचन (अब्रवीत्) कहा। (2)

हिन्दी: उस समय राजा दुर्योंधन ने व्यूह रचनायुक्त पाण्डवों की सेनाको देखकर और द्रोणाचार्य के पास जाकर यह वचन कहा। (2)

अध्याय1 का श्लोक 3

पश्य, एताम्, पाण्डुपुत्राणाम्, आचार्य, महतीम्, चमूम्,
व्यूढाम्, द्रुपदपुत्रोण, तव, शिष्येण, धीमता।।3।।

अनुवाद: (आचार्य) हे आचार्य! (तव) आपके (धीमता) बुद्धिमान् (शिष्येण) शिष्य (द्रुपदपुत्रोण) द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न द्वारा (व्यूढाम्) व्यूहाकार खड़ी की हुई (पाण्डुपुत्राणाम्) पाण्डु-पुत्रोंकी (एताम्) इस (महतीम्) बड़ी भारी (चमूम्) सेनाको (पश्य) देखिये। (3)

हिन्दी: हे आचार्य! आपके बुद्धिमान् शिष्य द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न द्वारा व्यूहाकार खड़ी की हुई पाण्डु-पुत्रों की इस बड़ी भारी सेनाको देखिये। (3)

अध्याय 1 का श्लोक 4, 5, 6

अत्र, शूराः, महेष्वासाः, भीमार्जुनसमाः, युधि,
युयुधानः, विराटः, च, दु्रपदः, च, महारथः।।4।।

धृष्टकेतुः, चेकितानः, काशिराजः, च, वीर्यवान्
पुरुजित्, कुन्तिभोजः, च, शैब्यः, च, नरपुग्वः।।5।।

युधामन्युः, च, विक्रान्तः, उत्तमौजाः, च, वीर्यवान्,
सौभद्रः, द्रौपदेयाः, च, सर्वे, एव, महारथाः।।6।।

अनुवाद: (अत्र) इस सेनामें (महेष्वासाः) बड़े-बड़े धनुषोंवाले (च) तथा (युधि) युद्धमें (भीमार्जुनसमाः) भीम और अर्जुनके समान (शूराः) शूर-वीर (युयुधानः) सात्यकि (च) और (विराटः) विराट (च) तथा (महारथः) महारथी (द्रुपदः) राजा द्रुपद {4}

(धृष्टकेतुः) धृष्टकेतु (च) और (चेकितानः) चेकितान (च) तथा (वीर्यवान्) बलवान् (काशिराजः) काशिराज (पुरुजित्) पुरुजित् (कुन्तिभोजः) कुन्तिभोज (च) और (नरपुग्वः) मनुष्योंमें श्रेष्ठ (शैब्यः) शैब्य {5}

(विक्रान्तः) पराक्रमी (युधामन्युः) युधामन्यु (च) तथा (वीर्यवान्) बलवान् (उत्तमौजाः) उत्तमौजा (सौभद्रः) सुभद्रापुत्र अभिमन्यु (च) एवं (द्रौपदेयाः)द्रौपदीके पाँचों पुत्र ये (सर्वे, एव)सभी (महारथाः) महारथी हैं। {6}

हिन्दी: इस सेना में बड़े-बड़े धनुषोंवाले तथा युद्धमें भीम और अर्जुनके समान शूर-वीर सात्यकि और विराट तथा महारथी राजा द्रुपद {4}

धृष्टकेतु और चेकितान तथा बलवान् काशिराज पुरुजित् कुन्तिभोज और मनुष्योंमें श्रेष्ठ शैब्य {5}

पराक्रमी युधामन्यु तथा बलवान् उत्तमौजा सुभद्रापुत्र अभिमन्यु एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र ये सभी महारथी हैं। {6}

अध्याय 1 का श्लोक 7

अस्माकम्, तु, विशिष्टाः, ये, तान्, निबोध, द्विजोत्तम,
नायकाः, मम, सैन्यस्य, सज्ञार्थम्, तान्, ब्रवीमि, ते।। 7।।

अनुवाद: (द्विजोत्तम) हे ब्राह्मणश्रेष्ठ! (अस्माकम्) अपने पक्षमें (तु) भी (ये) जो (विशिष्टाः) प्रधान हैं (तान्) उनको आप (निबोध) समझ लीजिये। (ते) आपकी (स×ज्ञार्थम्) जानकारीके लिए (मम) मेरी (सैन्यस्य) सेनाके जो-जो (नायकाः) सेनापति हैं (तान्) उनको (ब्रवीमि) बतलाता हूँ। (7)

हिन्दी: हे ब्राह्मणश्रेष्ठ! अपने पक्षमें भी जो प्रधान हैं उनको आप समझ लीजिये। आपकी जानकारीके लिए मेरी सेनाके जो-जो सेनापति हैं उनको बतलाता हूँ। (7)

अध्याय 1 का श्लोक 8

भवान्, भीष्मः, च, कर्णः, च, कृपः, च, समितिजयः,
अश्वत्थामा, विकर्णः, च, सौमदत्तिः, तथा, एव, च।।8।।

अनुवाद: (भवान्) आप-द्रोणाचार्य (च) और (भीष्मः) पितामह भीष्म (च) तथा (कर्णः) कर्ण (च) और (समितिजयः) संग्रामविजयी (कृपः) कृपाचार्य (च) तथा (तथा) वैसे (एव) ही (अश्वत्थामा) अश्वत्थामा (विकर्णः) विकर्ण (च) और (सौमदत्तिः) सोमदत्तका पुत्र भूरिश्रवा। (8)

हिन्दी: आप-द्रोणाचार्य और पितामह भीष्म तथा कर्ण और संग्रामविजयी कृपाचार्य तथा वैसे ही अश्वत्थामा विकर्ण और सोमदत्तका पुत्र भूरिश्रवा। (8)

अध्याय 1 का श्लोक 9

अन्ये, च, बहवः, शूराः, मदर्थे, त्यक्तजीविताः,
नानाशस्त्रप्रहरणाः, सर्वे, युद्धविशारदाः।।9।।

अनुवाद: (अन्ये) और (च) भी (मदर्थे) मेरे लिये (त्यक्तजीविताः) जीवनकी आशा त्याग देनेवाले (बहवः)बहुत-से (शूराः) शूरवीर (नानाशस्त्रप्रहरणाः) अनेक प्रकारके शस्त्रस्त्रोंसे सुसज्जित और (सर्वे) सब-के-सब (युद्धविशारदाः)युद्धमें चतुर हैं। (9)

हिन्दी: और भी मेरे लिये जीवनकी आशा त्याग देनेवाले बहुत-से शूरवीर अनेक प्रकारके शस्त्रस्त्रोंसे सुसज्जित और सब-के-सब युद्धमें चतुर हैं। (9)

अध्याय 1 का श्लोक 10

अपर्याप्तम्, तत्, अस्माकम्, बलम्, भीष्माभिरक्षितम्,
पर्याप्तम्, तु, इदम्, एतेषाम्, बलम्, भीमाभिरक्षितम्।।10।।

अनुवाद: (भीष्माभिरक्षितम्) भीष्मपितामह द्वारा रक्षित (अस्माकम्)हमारी (तत्)वह (बलम्)सेना (अपर्याप्तम्) सब प्रकारसे अजेय है (तु) और (भीमाभिरक्षितम्) भीमद्वारा रक्षित (एतेषाम्) इन लोगोंकी (इदम्) यह (बलम्) सेना (पर्याप्तम्) जीतनेमें सुगम है। (10)

हिन्दी: भीष्मपितामह द्वारा रक्षित हमारी वह सेना सब प्रकार से अजेय है और भीमद्वारा रक्षित इन लोगों की यह सेना जीतने में सुगम है। (10)

अध्याय 1 का श्लोक 11

अयनेषु, च, सर्वेषु, यथाभागम्, अवस्थिताः,
भीष्मम्, एव, अभिरक्षन्तु, भवन्तः, सर्वे, एव, हि।।11।।

अनुवाद: (च) इसलिए (सर्वेषु) सब (अयनेषु) मोर्चोंपर (यथाभागम्) अपनी-अपनी जगह (अवस्थिताः) स्थित रहते हुए (भवन्तः) आपलोग (सर्वे, एव) सभी (हि) निःसन्देह (भीष्मम्) भीष्मपितामहकी (एव) ही (अभिरक्षन्तु) सब ओरसे रक्षा करें। (11)

हिन्दी: इसलिए सब मोर्चोंपर अपनी-अपनी जगह स्थित रहते हुए आपलोग सभी निःसन्देह भीष्मपितामहकी ही सब ओरसे रक्षा करें। (11)

अध्याय 1 का श्लोक 12

तस्य, सजनयन्, हर्षम्, कुरुवृद्धः, पितामहः,
सिंहनादम्, विनद्य, उच्चैः, शङ्खम्, दध्मौ, प्रतापवान्।।12।।

अनुवाद: (कुरुवृद्धः) कौरवोंमें वृद्ध (प्रतापवान्) बड़े प्रतापी (पितामहः) पितामह भीष्मने (तस्य) उस दुर्योंधन के हृदयमें (हर्षम्) हर्ष (सजनयन्) उत्पन्न करते हुए (उच्चैः) उच्च स्वरसे (सिंहनादम्) सिंहकी दहाड़ के समान (विनद्य) गरजकर (शङ्खम्) शंख (दध्मौ) बजाया। (12)

हिन्दी: कौरवों में वृद्ध बड़े प्रतापी पितामह भीष्मने उस दुर्योंधन के हृदयमें हर्ष उत्पन्न करते हुए उच्च स्वरसे सिंहकी दहाड़ के समान गरजकर शंख बजाया। (12)

अध्याय 1 का श्लोक 13

ततः, शङ्खाः, च, भेर्यः, च, पणवानकगोमुखाः,
सहसा, एव, अभ्यहन्यन्त, सः, शब्दः, तुमुलः, अभवत्।।13।।

अनुवाद: (ततः) इसके पश्चात् (शङ्खाः) शंख (च) और (भेर्यः) नगारे (च) तथा (पणवानक गोमुखाः) ढोल, मृदंग और नरसिंघे आदि बाजे (सहसा) एक साथ (एव) ही (अभ्यहन्यन्त) बज उठे। उनका (सः) वह (शब्दः) शब्द (तुमुलः) बड़ा भयंकर (अभवत्) हुआ। (13)

हिन्दी: इसके पश्चात् शंख और नगारे तथा ढोल, मृदंग और नरसिंघे आदि बाजे एक साथ ही बज उठे। उनका वह शब्द बड़ा भयंकर हुआ। (13)

अध्याय 1 का श्लोक 14

ततः, श्वेतैः, हयैः, युक्ते, महति, स्यन्दने, स्थितौ,
माधवः, पाण्डवः, च, एव, दिव्यौ, शङ्खौ, प्रदध्मतुः।।14।।

अनुवाद: (ततः) इसके अनन्तर (श्वेतैः) सफेद (हयैः) घोड़ोंसे (युक्ते) युक्त (महति) उत्तम (स्यन्दने) रथमें (स्थितौ) बैठे हुए (माधवः) श्रीकृष्ण महाराज (च) और (पाण्डवः) अर्जुनने (एव) भी (दिव्यौ) अलौकिक (शङ्खौ) शंख (प्रदध्मतुः) बजाये। (14)

हिन्दी: इसके अनन्तर सफेद घोड़ोंसे युक्त उत्तम रथमें बैठे हुए श्रीकृष्ण महाराज और अर्जुनने भी अलौकिक शंख बजाये। (14)

अध्याय 1 का श्लोक 15

पाचजन्यम्, हृषीकेशः, देवदत्तम्, धनजयः,
पौण्ड्रम्, दध्मौ, महाशङ्खम्, भीमकर्मा, वृकोदरः।।15।।

अनुवाद: (हृषीकेशः) श्रीकृष्ण महाराजने (पाचजन्यम्) पाजन्य नामक (धनजयः) अर्जुनने (देवदत्तम्) देवदत्त नामक और (भीमकर्मा) भयानक कर्मवाले (वृकोदरः) भीमसेनने (पौण्ड्रम्) पौण्ड्र नामक (महाशङ्खम्) महाशंख (दध्मौ) बजाया। (15)

हिन्दी: श्रीकृष्ण महाराज ने पाजन्य नामक अर्जुन ने देवदत्त नामक और भयानक कर्मवाले भीमसेन ने पौण्ड्र नामक महाशंख बजाया। (15)

अध्याय 1 का श्लोक 16

अनन्तविजयम्, राजा, कुन्तीपुत्रः, युधिष्ठिरः,
नकुलः, सहदेवः, च, सुघोषमणिपुष्पकौ।।16।।

अनुवाद: (कुन्तीपुत्रः) कुन्तीपुत्र (राजा) राजा (युधिष्ठिरः) युधिष्ठिरने (अनन्तविजयम्) अनन्तविजय नामक और (नकुलः) नकुल (च) तथा (सहदेवः) सहदेवने (सुघोषमणिपुष्पकौ) सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाये। (16)

हिन्दी: कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय नामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाये। (16)

अध्याय 1 का श्लोक 17-18

काश्यः, च, परमेष्वासः, शिखण्डी, च, महारथः,
धृष्टद्युम्नः, विराटः, च, सात्यकिः, च, अपराजितः।।17।।

द्रुपद:, द्रौपदेयाः, च, सर्वशः, पृथिवीपते,
सौभद्रः, च, महाबाहुः, शङ्खान्, दध्मुः, पृथक्, पृथक्।।18।।

अनुवाद: (परमेष्वासः) श्रेष्ठ धनुषवाले (काश्यः) काशिराज (च) और (महारथः) महारथी (शिखण्डी) शिखण्डी (च) एवं (धृष्टद्युम्नः) धृष्टद्युम्न (च) तथा (विराटः) राजा विराट (च) और (अपराजितः) अजेय (सात्यकिः) सात्यकि (दु्रपदः) राजा द्रुपद (च) एवं (द्रौपदेयाः) द्रौपदीके पाँचों पुत्र (च) और (महाबाहुः) बड़ी भुजावाले (सौभद्रः) सुभद्रापुत्र अभिमन्यु इन सभीने (पृथिवीपते) हे राजन्! (सर्वशः) सब ओरसे (पृथक्-पृथक्) अलग-अलग (शङ्खान्) शंख (दध्मुः) बजाये। (18)

हिन्दी: श्रेष्ठ धनुषवाले काशिराज और महारथी शिखण्डी एवं धृष्टद्युम्न तथा राजा विराट और अजेय सात्यकि राजा द्रुपद एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र और बड़ी भुजावाले सुभद्रापुत्र अभिमन्यु इन सभीने हे राजन्! सब ओरसे अलग-अलग शंख बजाये। (17, 18)

अध्याय 1 का श्लोक 19

सः, घोषः, धार्तराष्ट्राणाम्, हृदयानि, व्यदारयत्,
नभः, च, पृथिवीम्, च, एव, तुमुलः, व्यनुनादयन्।।19।।

अनुवाद: (च) और (सः) उस (तुमुलः) भयानक (घोषः) शब्दने (नभः) आकाश (च) और (पृथिवीम्) पृथ्वीको (एव) भी (व्यनुनादयन्) गुँजाते हुए (धार्तराष्ट्राणाम्) धृतराष्ट्रके यानि आपके पक्षवालोंके (हृदयानि) हृदय (व्यदारयत्) विदीर्ण कर दिये। (19)

हिन्दी: और उस भयानक शब्द ने आकाश और पृथ्वी को भी गुँजाते हुए धृतराष्ट्र के यानि आपके पक्षवालों के हृदय विदीर्ण कर दिये। (19)

अध्याय 1 का श्लोक 20-21

अथ, व्यवस्थितान्, दृष्टवा, धार्तराष्ट्रान्, कपिध्वजः,
प्रवृत्ते, शस्त्रसम्पाते, धनुः, उद्यम्य, पाण्डवः।।20।।

हृषीकेशम्, तदा, वाक्यम्, इदम्, आह, महीपते,
सेनयोः, उभयोः, मध्ये, रथम्, स्थापय, मे, अच्युत।।21।।

अनुवाद: (महीपते) हे राजन्! (अथ) इसके बाद (कपिध्वजः) कपिध्वज (पाण्डवः) अर्जुनने (व्यवस्थितान्) मोर्चा बाँधकर डटे हुए (धार्तराष्ट्रान्) धृतराष्ट्र सम्बन्धियोंको (दृष्टवा) देखकर (तदा) उस (शस्त्रसम्पाते) शस्त्र चलनेकी तैयारीके (प्रवृत्ते) समय (धनुः) धनुष (उद्यम्य) उठाकर (हृषीकेशम्) हृषीकेश श्रीकृष्ण महाराजसे (इदम्) यह (वाक्यम्) वचन (आह) कहा (अच्युत) हे अच्युत! (मे) मेरे (रथम्) रथको (उभयोः) दोनों (सेनयोः) सेनाओंके (मध्ये) बीचमें (स्थापय) खड़ा कीजिये। (20, 21)

हिन्दी: हे राजन्! इसके बाद कपिध्वज अर्जुन ने मोर्चा बाँधकर डटे हुए धृतराष्ट्र सम्बन्धियों को देखकर उस शस्त्र चलने की तैयारी के समय धनुष उठाकर हृषीकेश श्रीकृष्ण महाराज से यह वचन कहा हे, अच्युत! मेरे रथको दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिये। (20, 21)

अध्याय 1 का श्लोक 22

(अर्जुन उवाच)

यावत्, एतान्, निरीक्षे, अहम्, योद्धुकामान्, अवस्थितान्,
कैः, मया, सह, योद्धव्यम्, अस्मिन्, रणसमुद्यमे।।22।।

अनुवाद: (यावत्) जबतक कि (अहम्) मैं (अवस्थितान्) युद्ध-क्षेत्रमें डटे हुए (योद्धुकामान्) युद्धके अभिलाषी (एतान्) इन विपक्षी योद्धओंको (निरीक्षे) भली प्रकार देख लूँ कि (अस्मिन्) इस (रणसमुद्यमे) युद्धरूप व्यापारमें (मया) मुझे (कैः) किन-किनके (सह) साथ (योद्धव्यम्) युद्ध करना योग्य है। (22)

हिन्दी: जबतक कि मैं युद्ध-क्षेत्रमें डटे हुए युद्धके अभिलाषी इन विपक्षी योद्धओंको भली प्रकार देख लूँ कि इस युद्धरूप व्यापारमें मुझे किन-किनके साथ युद्ध करना योग्य है। (22)

अध्याय 1 का श्लोक 23

योत्स्यमानान्, अवेक्षे, अहम्, ये, एते, अत्र, समागताः,
धार्तराष्ट्रस्य, दुर्बुद्धेः, युद्धे, प्रियचिकीर्षवः।।23।।

अनुवाद: (दुर्बुद्धेः) दुर्बुद्धि (धार्तराष्ट्रस्य) धृतराष्ट्रके दुर्योंधनका (युद्धे) युद्धमें (प्रियचिकीर्षवः) हित चाहनेवाले (ये) जो-जो (एते) ये राजालोग (अत्र) इस सेनामें (समागताः) आये हैं इन (योत्स्यमानान्)युद्ध करनेवालोंको (अहम्) मैं (अवेक्षे) देखूँगा। (23)

हिन्दी: दुर्बुद्धि धृतराष्ट्र के दुर्योंधन का युद्धमें हित चाहनेवाले जो-जो ये राजालोग इस सेना में आये हैं इन युद्ध करनेवालों को मैं देखूँगा। (23)

अध्याय 1 का श्लोक 24-25

(संजय उवाच)

एवम्, उक्तः, हृषीकेशः, गुडाकेशेन, भारत,
सेनयोः, उभयोः, मध्ये, स्थापयित्वा, रथोत्तमम्।।24।।

भीष्मद्रोणप्रमुखतः, सर्वेषाम्, च, महीक्षिताम्,
उवाच, पार्थ, पश्य, एतान्, समवेतान्, कुरून्, इति।।25।।

अनुवाद: (भारत) हे धृतराष्ट्र! (गुडाकेशेन) अर्जुनद्वारा (एवम्) इस प्रकार (उक्तः) कहे हुए (हृषीकेशः) महाराज श्रीकृणचन्द्रने (उभयोः) दोनों (सेनयोः) सेनाओंके (मध्ये) बीचमें (भीष्मद्रोणप्रमुखतः) भीष्म और द्रोणाचार्यके सामने (च) तथा (सर्वेषाम्) सम्पूर्ण (महीक्षिताम्) राजाओंके सामने (रथोत्तमम्) उत्तम रथको (स्थापयित्वा) खड़ा करके (इति) इस प्रकार (उवाच) कहा कि (पार्थ) हे पार्थ! युद्ध के लिये (समवेतान्) जुटे हुए (एतान्) इन (कुरून्) कौरवोंको (पश्य) देख। (24, 25)

हिन्दी: हे धृतराष्ट्र! अर्जुन द्वारा इस प्रकार कहे हुए महाराज श्रीकृणचन्द्र ने दोनों सेनाओं के बीच में भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने तथा सम्पूर्ण राजाओं के सामने उत्तम रथको खड़ा करके इस प्रकार कहा कि हे पार्थ! युद्ध के लिये जुटे हुए इन कौरवों को देख। (24, 25)

अध्याय 1 का श्लोक 26-27

तत्र, अपश्यत्, स्थितान्, पार्थः, पित¤न्, अथ, पितामहान्,
आचार्यान्, मातुलान्, भ्रात¤न्, पुत्रान्, पौत्रान्, सखीन्,तथा (26)

श्वशुरान्, सुहृदः, च, एव, सेनयोः, उभयोः, अपि,
तान्, समीक्ष्य, सः, कौन्तेयः, सर्वान्, बन्धून्, अवस्थितान्,।। (27)

अनुवाद: (अथ) इसके बाद (पार्थः) पृथापुत्र अर्जुनने (तत्र) उन (उभयोः) दोनों (एव) ही (सेनयोः) सेनाओंमें (स्थितान्) स्थित (पित¤न्) ताऊ-चाचोंको (पितामहान्) दादों-परदादोंको (आचार्यान्) गुरुओंको (मातुलान्) मामाओंको (भ्रात¤न्) भाइयोंको (पुत्रान्) पुत्रोंको (पौत्रान्) पौत्रोंको (तथा) तथा (सखीन्) मित्रोंकों (श्वशुरान्) ससुरोंको (च) और (सुहृदः) सुहृदोंको (अपि) भी (अपश्यत्) देखा। (तान्) उन (अवस्थितान्) उपस्थित (सर्वान्) सम्पूर्ण (बन्धून्) बन्धुओंको (समीक्ष्य) देखकर (सः) उस (कौन्तेयः) कुन्तीपुत्र अर्जुन ने। (26-27)

हिन्दी: इसके बाद पृथापुत्र अर्जुनने उन दोनों ही सेनाओं में स्थित ताऊ-चाचों को दादों-परदादों को गुरुओं को मामाओं को भाइयों को पुत्रों को पौत्रों को तथा मित्रों कों ससुरों को और सुहृदों को भी देखा। उन उपस्थित सम्पूर्ण बन्धुओं को देखकर उस कुन्तीपुत्र अर्जुन ने। (26, 27)

अध्याय 1 का श्लोक 28

(अर्जुन उवाच)

कृपया, परया, आविष्टः, विषीदन्, इदम्, अब्रवीत्,
दृष्टवा, इमम्, स्वजनम्, कृष्ण, युयुत्सुम्, समुपस्थितम्।।28।।

अनुवाद: (परया) अत्यन्त (कृपया) करुणासे (आविष्टः) युक्त होकर (विषीदन्) शोक करते हुए (इदम्) यह वचन (अब्रवीत्) बोले। (कृष्ण) हे कृष्ण! युद्ध-क्षेत्रमें (समुपस्थितम्) डटे हुए (युयुत्सुम्) युद्धके अभिलाषी (इमम्) इस (स्वजनम्) स्वजन-समुदायको (दृष्टवा) देखकर (28)

हिन्दी: अत्यन्त करुणासे युक्त होकर शोक करते हुए यह वचन बोले। हे कृष्ण! युद्ध-क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इस स्वजन-समुदायको देखकर (28)

अध्याय 1 का श्लोक 29

सीदन्ति, मम, गात्रणि, मुखम्, च, परिशुष्यति,
वेपथुः, च, शरीरे, मे, रोमहर्षः, च, जायते।।29।।

अनुवाद:(मम) मेरे (गात्रणि) अंग (सीदन्ति) शिथिल हुए जा रहे हैं। (च) और (मुखम्) मुख (परिशुष्यति) सूखा जा रहा है (च) तथा (मे) मेरे (शरीरे) शरीरमें (वेपथुः) कम्पन (च) एवं (रोमहर्षः) रोमांच (जायते) हो रहा है। (29)

हिन्दी: मेरे अंग शिथिल हुए जा रहे हैं। और मुख सूखा जा रहा है तथा मेरे शरीरमें कम्पन एवं रोमांच हो रहा है। (29)

अध्याय 1 का श्लोक 30

गाण्डीवम्, स्त्रांसते, हस्तात्, त्वक्, च, एव, परिदह्यते,
न, च, शक्नोमि, अवस्थातुम्, भ्रमति, इव, च, मे, मनः।।30।।

अनुवाद: (हस्तात्) हाथसे (गाण्डीवम्) गाण्डीव धनुष (स्त्रांसते) गिर रहा है (च) और (त्वक्) त्वचा (एव) भी (परिदह्यते) बहुत जल रही है (च) तथा (मे) मेरा (मनः) मन (भ्रमति, इव) भ्रमित-सा हो रहा है इसलिए मैं (अवस्थातुम्) खड़ा रहनेको (च) भी (न शक्नोमि) समर्थ नहीं हूँ। (30)

हिन्दी: हाथ से गाण्डीव धनुष गिर रहा है और त्वचा भी बहुत जल रही है तथा मेरा मन भ्रमित-सा हो रहा है इसलिए मैं खड़ा रहने को भी समर्थ नहीं हूँ। (30)

अध्याय 1 का श्लोक 31

निमित्तानि, च, पश्यामि, विपरीतानि, केशव,
न, च, श्रेयः, अनुपश्यामि, हत्वा, स्वजनम्, आहवे।।31।।

अनुवाद: (केशव) हे केशव! मैं (निमित्तानि) लक्षणोंको (च) भी (विपरीतानि) विपरीत ही (पश्यामि) देख रहा हूँ तथा (आहवे) युद्धमें (स्वजनम्) स्वजनसमुदायको (हत्वा) मारकर (श्रेयः) कल्याण (च) भी (न) नहीं (अनुपश्यामि) देखता। (31)

हिन्दी: हे केशव! मैं लक्षणोंको भी विपरीत ही देख रहा हूँ तथा युद्धमें स्वजनसमुदायको मारकर कल्याण भी नहीं देखता। (31)

अध्याय 1 का श्लोक 32

न, काङ्क्षे, विजयम्, कृष्ण, न, च, राज्यम्, सुखानि, च,
किम्, नः, राज्येन, गोविन्द, किम्, भोगैः, जीवितेन, वा।।32।।

अनुवाद: (कृष्ण) हे कृष्ण! मैं (न) न तो (विजयम्) विजय (काङ्क्षे) चाहता हूँ (च) और (न) न (राज्यम्) राज्य (च) तथा (सुखानि) सुखोंको ही (गोविन्द) हे गोविन्द! (नः) हमें ऐसे (राज्येन) राज्यसे (किम्) क्या प्रयोजन है (वा) अथवा ऐसे (भोगैः) भोगोंसे और (जीवितेन) जीवनसे भी (किम्) क्या लाभ है?। (32)

हिन्दी: हे कृष्ण! मैं न तो विजय चाहता हूँ और न राज्य तथा सुखोंको ही; हे गोविन्द! हमें ऐसे राज्य से क्या प्रयोजन है अथवा ऐसे भोगों से और जीवन से भी क्या लाभ है?। (32)

अध्याय 1 का श्लोक 33

येषाम्, अर्थे, काङ्क्षितम्, नः, राज्यम्, भोगाः, सुखानि, च,
ते, इमे, अवस्थिताः, युद्धे, प्राणान्, त्यक्त्वा, धनानि, च।।33।।

अनुवाद: (नः) हमें (येषाम्) जिनके (अर्थे) लिये (राज्यम्) राज्य (भोगाः) भोग (च) और (सुखानि) सुखादि (काङ्क्षितम्) अभीष्ट हैं (ते) वे ही (इमे) ये सब (धनानि) धन (च) और (प्राणान्) जीवन की आशा को (त्यक्त्वा) त्यागकर (युद्धे) युद्धमें (अवस्थिताः) खड़े हैं। (33)

हिन्दी: हमें जिनके लिये राज्य भोग और सुखादि अभीष्ट हैं वे ही ये सब धन और जीवन की आशा को त्यागकर युद्धमें खड़े हैं। (33)

अध्याय 1 का श्लोक 34

आचार्याः, पितरः, पुत्रः, तथा, एव, च, पितामहाः,
मातुलाः, श्वशुराः, पौत्रः, श्यालाः, सम्बन्धिनः, तथा।।34।।

अनुवाद: (आचार्याः) गुरुजन (पितरः) ताऊ-चाचे (पुत्रः) लड़के (च) और (तथा, एव) उसी प्रकार (पितामहाः) दादे (मातुलाः) मामे (श्वशुराः) ससुर (पौत्रः) पौत्र (श्यालाः) साले (तथा) तथा और भी (सम्बन्धिनः) सम्बन्धी लोग हैं। (34)

हिन्दी: गुरुजन ताऊ-चाचे लड़के और उसी प्रकार दादे मामे ससुर पौत्र साले तथा और भी सम्बन्धी लोग हैं। (34)

अध्याय 1 का श्लोक 35

एतान्, न, हन्तुम्, इच्छामि, घ्नतः, अपि, मधुसूदन,
अपि त्रौलोक्यराज्यस्य, हेतोः, किम्, नु, महीकृते।।35।।

अनुवाद: (मधुसूदन) हे मधुसूदन! मुझे (घ्नतः) मारनेपर (अपि) भी अथवा (त्रौलोक्यराज्यस्य) तीनों लोकोंके राज्यके (हेतोः) लिये (अपि) भी मैं (एतान्) इन सबको (हन्तुम्) मारना (न) नहीं (इच्छामि) चाहता फिर (महीकृते) पृथ्वीके लिये तो (नु किम्) कहना ही क्या है?। (35)

हिन्दी: हे मधुसूदन! मुझे मारने पर भी अथवा तीनों लोकों के राज्यके लिये भी मैं इन सबको मारना नहीं चाहता फिर पृथ्वी के लिये तो कहना ही क्या है?। (36)

अध्याय 1 का श्लोक 36

निहत्य, धार्तराष्ट्रान्, नः, का, प्रीतिः, स्यात्, जनार्दन,
पापम्, एव, आश्रयेत्, अस्मान्, हत्वा, एतान्, आततायिनः।।36।।

अनुवाद: (जनार्दन) हे जनार्दन! (धार्तराष्ट्रान्) धृतराष्ट्रके पुत्रोंको (निहत्य) मारकर (नः) हमें (का) क्या (प्रीतिः) प्रसन्नता (स्यात्) होगी? (एतान्) इन (आततायिनः) आततायियोंको (हत्वा) मारकर तो (अस्मान्) हमें (पापम्) पाप (एव) ही (आश्रयेत्) लगेगा। (36)

हिन्दी: हे जनार्दन! धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हमें क्या प्रसन्नता होगी? इन आततायियों को मारकर तो हमें पाप ही लगेगा। (36)

अध्याय 1 का श्लोक 37

तस्मात्, न, अर्हाः, वयम्, हन्तुम्, धार्तराष्ट्रान्, स्वबान्धवान्,
स्वजनम्, हि, कथम्, हत्वा, सुखिनः, स्याम, माधव।।37।।

अनुवाद: (तस्मात्) अतएव (माधव) हे माधव! (स्वबान्धवान्) अपने ही बान्धव (धार्तराष्ट्रान्) धृतराष्ट्रके पुत्रोंको (हन्तुम्) मारनेके लिये (वयम्) हम (न अर्हाः) योग्य नहीं हैं (हि) क्योंकि (स्वजनम्) अपने ही कुटुम्बको (हत्वा) मारकर हम (कथम्) कैसे (सुखिनः) सुखी (स्याम) होंगे?। (37)

हिन्दी: अतएव हे माधव! अपने ही बान्धव धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारने के लिये हम योग्य नहीं हैं क्योंकि अपने ही कुटुम्ब को मारकर हम कैसे सुखी होंगे?। (37)

अध्याय 1 का श्लोक 38-39

यद्यपि, एते, न, पश्यन्ति, लोभोपहतचेतसः,
कुलक्षयकृतम्, दोषम्, मित्रद्रोहे, च, पातकम्।।38।।

कथम्, न, ज्ञेयम्, अस्माभिः, पापात्, अस्मात्, निवर्तितुम्,
कुलक्षयकृतम्, दोषम्, प्रपश्यभ्दिः, जनार्दन।।39।।

अनुवाद: (यद्यपि) यद्यपि (लोभोपहतचेतसः) लोभसे भ्रष्टचित हुए (एते) ये लोग (कुलक्षयकृतम्) कुलके नाशसे उत्पन्न (दोषम्) दोषको (च) और (मित्रद्रोहे) मित्रोंसे विरोध करनेमें (पातकम्) पापको (न) नहीं (पश्यन्ति) देखते तो भी (जनार्दन) हे जनार्दन! (कुलक्षयकृतम्) कुलके नाशसे उत्पन्न (दोषम्) दोषको (प्रपश्यभ्दिः) जाननेवाले (अस्माभिः) हमलोगोंको (अस्मात्) इस (पापात्) पापसे (निवर्तितुम्) हटनेके लिये (कथम्) क्यों (न) नहीं (ज्ञेयम्) विचार करना चाहिये?। (38, 39)

हिन्दी: यद्यपि लोभसे भ्रष्टचित हुए ये लोग कुलके नाशसे उत्पन्न दोषको और मित्रोंसे विरोध करने में पाप को नहीं देखते तो भी हे जनार्दन! कुलके नाशसे उत्पन्न दोष को जानने वाले हम लोगों को इस पापसे हटने के लिये क्यों नहीं विचार करना चाहिये?। (38, 39)

अध्याय 1 का श्लोक 40

कुलक्षये, प्रणश्यन्ति, कुलधर्माः, सनातनाः,
धर्मे, नष्टे, कुलम्, कृत्स्न्नम्, अधर्मः, अभिभवति, उत।।40।।

अनुवाद: (कुलक्षये) कुलके नाशसे (सनातनाः) सनातन (कुलधर्माः) कुलधर्म (प्रणश्यन्ति) नष्ट हो जाते हैं (धर्मे) धर्मके (नष्टे) नाश हो जानेपर (कृत्स्त्रम्) सम्पूर्ण (कुलम्) कुलमें (अधर्मः) पाप (उत) भी (अभिभवति) बहुत फैल जाता है। (40)

हिन्दी: कुल के नाश से सनातन कुलधर्म नष्ट हो जाते हैं धर्मके नाश हो जानेपर सम्पूर्ण कुल में पाप भी बहुत फैल जाता है। (40)

अध्याय 1 का श्लोक 41

अधर्माभिभवात्, कृष्ण, प्रदुष्यन्ति, कुलस्त्रिायः,
स्त्रीषु, दुष्टासु, वाष्र्णेय, जायते, वर्णसंकरः।।41।।

अनुवाद: (कृष्ण) हे कृष्ण! (अधर्माभिभवात्) पापके अधिक बढ़ जानेसे (कुलस्त्रिायः) कुलकी स्त्रियाँ (प्रदुष्यन्ति) अत्यन्त दूषित हो जाती हैं और (वाष्र्णेय) हे वाष्र्णेंय! (स्त्रीषु) स्त्रियोंके (दुष्टासु) दूषित चरित्र वाली हो जानेपर (वर्णसंकर) वर्णशंकर संतान (जायते) उत्पन्न होती है। (41)

हिन्दी: हे कृष्ण! पापके अधिक बढ़ जाने से कुलकी स्त्रियाँ अत्यन्त दूषित हो जाती हैं और हे वाष्र्णेंय! स्त्रियोंके दूषित चरित्र वाली हो जानेपर वर्णशंकर संतान उत्पन्न होती है। (41)

अध्याय 1का श्लोक 42

संकरः, नरकाय, एव, कुलघ्नानाम्, कुलस्य, च,
पतन्ति, पितरः, हि, एषाम्, लुप्तपिण्डोदकक्रियाः।।42।।

अनुवाद: (संकरः) वर्णसंकर (कुलघ्नानाम्) कुलघातियोंको (च) और (कुलस्य) कुलको (नरकाय) नरकमें ले जानेके लिये (एव) ही होता है (लुप्तपिण्डोदक) गुप्त शारीरिक विलास जो नर-मादा के बीज और रज रूप जल की (क्रियाः) क्रियासे (एषाम्) इनके (पितरः) वंश (हि) भी (पतन्ति) अधोगतिको प्राप्त होते हैं। (42)

हिन्दी: वर्णसंकर कुलघातियों को और कुल को नरक में ले जाने के लिये ही होता है गुप्त शारीरिक विलास जो नर-मादा के बीज और रज रूप जल की क्रिया से इनके वंश भी अधोगति को प्राप्त होते हैं। (42)

अध्याय 1 का श्लोक 43

दोषैः, एतैः, कुलघ्नानाम्, वर्णसंकरकारकैः,
उत्साद्यन्ते, जातिधर्माः, कुलधर्माः, च, शाश्वताः।।43।।

अनुवाद: (एतैः) इन (वर्णसंकरकारकैः) वर्णसंकरकारक (दोषैः) दोषोंसे (कुलघ्नानाम्) कुलघातियोंके (शाश्वताः) सनातन (कुलधर्माः) कुल-धर्म (च) और (जातिधर्माः) जाति- धर्म (उत्साद्यन्ते) नष्ट हो जाते हैं। (43)

हिन्दी: इन वर्णसंकरकारक दोषों से कुलघातियों के सनातन कुल-धर्म और जाति- धर्म नष्ट हो जाते हैं। (43)

अध्याय 1 का श्लोक 44

उत्सन्नकुलधर्माणाम्, मनुष्याणाम्, जनार्दन,
नरके, अनियतम्, वासः, भवति, इति, अनुशुश्रुम।।44।।

अनुवाद: (जनार्दन) हे जनार्दन! (उत्सन्नकुल धर्माणाम्) जिनका कुल-धर्म नष्ट हो गया है ऐसे (मनुष्याणाम्) मनुष्योंका (अनियतम्) अनिश्चित कालतक (नरके) नरकमें (वासः) वास (भवति) होता है (इति) ऐसा हम (अनुशुश्रुम) सुनते आये हैं। (44)

हिन्दी: हे जनार्दन! जिनका कुल-धर्म नष्ट हो गया है ऐसे मनुष्योंका अनिश्चित कालतक नरकमें वास होता है ऐसा हम सुनते आये हैं। (44)

अध्याय 1 का श्लोक 45

अहो, बत, महत्, पापम्, कर्तुम्, व्यवसिताः, वयम्,
यत्, राज्यसुखलोभेन, हन्तुम्, स्वजनम्, उद्यताः।।45।।

अनुवाद: (अहो) हा! (बत) शोक! (वयम्) हमलोग बुद्धिमान् होकर भी (महत्) महान् (पापम्) पाप (कर्तुम्) करनेको (व्यवसिताः) तैयार हो गये हैं (यत्) जो (राज्यसुखलोभेन) राज्य और सुखके लोभसे (स्वजनम्) स्वजनोंको (हन्तुम्) मारनेके लिये (उद्यताः) उद्यत हो गये हैं। (45)

हिन्दी: हा! शोक! हमलोग बुद्धिमान् होकर भी महान् पाप करने को तैयार हो गये हैं जो राज्य और सुख के लोभ से स्वजनों को मारने के लिये उद्यत हो गये हैं। (45)

अध्याय 1 का श्लोक 46

यदि, माम्, अप्रतीकारम्, अशस्त्राम्, शस्त्रापाणयः,
धार्तराष्ट्राः, रणे, हन्युः, तत्, मे, क्षेमतरम्, भवेत्।।46।।

अनुवाद: (यदि) यदि (माम्) मुझ (अशस्त्राम्) शस्त्ररहित एवं (अप्रतीकारम्) सामना न करनेवालेको (शस्त्रपाणयः) शस्त्र हाथमें लिये हुए (धार्तराष्ट्राः) धृतराष्ट्रके पुत्र (रणे) रणमें (हन्युः) मार डालें तो (तत्) वह मरना भी (मे) मेरे लिये (क्षेमतरम्) अधिक कल्याण-कारक (भवेत्) होगा। (46)

हिन्दी: यदि मुझ शस्त्ररहित एवं सामना न करनेवाले को शस्त्र हाथ में लिये हुए धृतराष्ट्र के पुत्र रण में मार डालें तो वह मरना भी मेरे लिये अधिक कल्याण-कारक होगा। (46)

अध्याय 1 का श्लोक 47

एवम्, उक्त्वा, अर्जुनः, सङ्ख्ये, रथोपस्थे, उपाविशत्,
विसृज्य, सशरम्, चापम्, शोकसंविग्नमानसः।।47।।

अनुवाद: (सङ्ख्ये) रणभूमिमें (शोकसंविग्न) शोकसे उद्विग्न (मानसः) मनवाला (अर्जुनः) अर्जुन (एवम्) इस प्रकार (उक्त्वा) कहकर (सशरम्) बाणसहित (चापम्) धनुषको (विसृज्य) त्यागकर (रथोपस्थे) रथके पिछले भागमें (उपाविशत्) बैठ गया। (47)

हिन्दी: रणभूमि में शोक से उद्विग्न मनवाला अर्जुन इस प्रकार कहकर बाण सहित धनुष को त्यागकर रथके पिछले भागमें बैठ गया। (47)

(इति अध्याय प्रथम)