अध्याय 15 श्लोक 6

Shrimad Bhagavad Gita Chapter 15 Verse 6

न, तत्, भासयते, सूर्यः, न, शशांकः, न, पावकः,
यत्, गत्वा, न, निवर्तन्ते, तत्, धाम, परमम्, मम् ।।6।।

अनुवाद: (यत्) जहाँ (गत्वा) जाकर (न, निवर्तन्ते) लौटकर संसारमें नहीं आते (तत्) उस स्थान को (न) न (सूर्यः) सूर्य (भासयते) प्रकाशित कर सकता है (न) न (शशांक) चन्द्रमा और (न) न (पावकः) अग्नि ही (तत् धाम) वह सतलोक (परमम् मम्) मेरे लोक से श्रेष्ठ है। 

अनुवाद: जहाँ जाकर लौटकर संसारमें नहीं आते उस स्थान को न सूर्य प्रकाशित कर सकता है न चन्द्रमा और न अग्नि ही वह सतलोक मेरे लोक से श्रेष्ठ है।

गीता जी के अन्य अनुवाद कर्ताओं ने लिखा है कि ‘‘वह मेरा परम धाम है’’ यदि यह भी माने तो यह गीता बोलने वाला ब्रह्म सत्यलोक अर्थात् परम धाम से निष्कासित है, इसलिए कहा है कि मेरा परमधाम भी वही है तथा मेरे लोक से श्रेष्ठ है, जहाँ जाने के पश्चात् फिर जन्म-मृत्यु में नहीं आते। इसीलिए अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि उसी आदि पुरूष परमात्मा की मैं शरण हूँ। (6)