Devdwijgurupraagyapoojnm’, shauchm’, aarjavam’,
Brahmcharyam’, ahimsa, ch, shaareeram’, tapH, uchyate ||14||
Translation: (Devdwijgurupraagyapoojnm’) respect of persons with divine nature i.e. saints, Brahmins, Guru and learned persons (shauchm’) purity (aarjavam’) submissiveness (brahmcharyam’) celibacy (ch) and (ahimsa) non-violence (shaareeram’) related to body (tapH) austerity (uchyate) is said to be. (14)
Respect of persons with divine nature i.e. saints, Brahmins, Guru and learned persons, purity, submissiveness, celibacy, and non-violence, this is said to be austerity related to the body. But all this is contrary to scriptural injunctions and because of which is useless religious practice. Because in Gita Adhyay 16 Shlok 23-24, to act arbitrarily abandoning the scriptural injunctions has been described as useless.
देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनम्, शौचम्, आर्जवम्,
ब्रह्मचर्यम्, अहिंसा, च, शारीरम्, तपः, उच्यते।।14।।
अनुवाद: (देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनम्) दैवी वृृति वाले व्यक्ति अर्थात संत, ब्राह्मण, गुरु और ज्ञानीजनोंका आदर (शौचम्) पवित्राता (आर्जवम्) आधीनी (ब्रह्मचर्यम्) ब्रह्मचर्य (च) और (अहिंसा) अहिंसा यह (शारीरम्) शरीरसम्बन्धी (तपः) तप (उच्यते) कहा जाता है। परन्तु सर्व शास्त्रा विधि रहित है जिस कारण से व्यर्थ साधना है। क्योंकि गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में शास्त्रा विधि त्याग कर मनमाना आचरण करने को व्यर्थ बताया है। (14)
केवल हिन्दी अनुवाद: दैवी वृति वाले व्यक्ति अर्थात संत, ब्राह्मण, गुरु और ज्ञानीजनोंका आदर पवित्राता आधीनी ब्रह्मचर्य और अहिंसा यह शरीरसम्बन्धी तप कहा जाता है। परन्तु सर्व शास्त्रा विधि रहित है जिस कारण से व्यर्थ साधना है। क्योंकि गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में शास्त्रा विधि त्याग कर मनमाना आचरण करने को व्यर्थ बताया है। (14)