Chapter 17 Verse 2

Chapter 17 Verse 2

(Bhagwan uvaach)

Trividha, bhavti, shraddha, dehinaam, saa, swabhaavja,
Sattviki, Rajsi, ch, ev, Tamsi, ch, iti, taam, shrnu ||2||

(God said)

Translation: (Dehinam) of the men / human beings (saa) that (swabhaavja) born of nature (shraddha) faith (Sattviki) Satviki (ch) and (Rajsi) Rajsi (ch) and (Tamsi) Tamsi (iti) thus (trividha) of three types (ev) only (bhavti) is (taam) that snare of darkness of ignorance (shrnu) hear about. (2)

Translation

That faith of the men, born of their nature, is of three types only – Satviki and Rajsi and Tamsi. Hear about that snare of darkness of ignorance.


(भगवान उवाच)

त्रिविधा, भवति, श्रद्धा, देहिनाम्, सा, स्वभावजा,
सात्त्विकी, राजसी, च, एव, तामसी, च, इति, ताम्, श्रृृणु।।2।।

अनुवाद: (देहिनाम्) मनुष्योंकी (सा) वह (स्वभावजा) स्वभावसे उत्पन्न (श्रद्धा) श्रद्धा (सात्त्विकी) सात्विकी (च) और (राजसी) राजसी (च) तथा (तामसी) तामसी (इति) ऐसे (त्रिविधा) तीनों प्रकारकी (एव) ही (भवति) होती है। (ताम्) उस अज्ञान अंधकार रूप जंजाल को (श्रृणु) सुन। (2)

केवल हिन्दी अनुवाद: मनुष्योंकी वह स्वभावसे उत्पन्न श्रद्धा सात्विकी और राजसी तथा तामसी ऐसे तीनों प्रकारकी ही होती है। उस अज्ञान अंधकार रूप जंजाल को सुन। (2)