Chapter 3 Verse 33

Chapter 3 Verse 33

Sadrsham, cheshtte, swasyaH, prkrteH, gyaanvaan, api,
Prkrtim, yaanti, bhootaani, nigrhH, kim, karishyati ||33||

Translation: (Bhootaani) all living beings (prkrtim) Prakriti i.e. nature (yaanti) attain (gyaanvaan) knowledgeable persons (api) also (swasyaH)) on the basis of the path of bhakti concluded by them (prkrteH) nature (sadrsham) according to (cheshtte) endeavours (nigrhH) force/restrain (kim) what (karishyati) will do? (33)

Translation

All living beings follow their nature. Knowledgeable persons also endeavour according to their nature on the basis of the path of bhakti concluded by them. What will (Hath) restrain accomplish?

Important

All living beings perform religious acts according to their nature. They do not listen when told. Those persons of demoniac character follow baseless i.e. arbitrary practices opposed to my opinion:- evidence in Gita Adhyay 16 and 17.

Note

The purport of Adhyay 3 Shlok 33, 34, 35 is that all the living beings are under the control of Prakriti (Maya) only. They act according to their nature. Similarly, the knowledgeable persons also act according to their habits, then what will hath (restrain) do.

Gist

Educated people, who are devoid of Tatvgyan (True spiritual knowledge), do not leave their wrong way of worship no matter how much they are requested. Even if evidences from the true scriptures are shown, they do not agree. Some knowledgeable- learned men out of pride with the desire of making money and making more disciples do not follow the truth. The uneducated and educated disciples of those saints devoid of Tatvgyan even after seeing the evidences do not leave those ignorant saints and do not accept the true way of worship; they are fools. Both (knowledgeable and ignorant) are acting according to their temperaments. Therefore, the path of bhakti has taken a wrong direction and it is useless to advice both of them.

Garib, chaatur praani chor hain, mood mugdh hain thoth |
Santon ke nahin kaam ke, inkoon de gal jot ||


सदृशम्, चेष्टते, स्वस्याः, प्रकृतेः, ज्ञानवान्, अपि,
प्रकृतिम्, यान्ति, भूतानि, निग्रहः, किम्, करिष्यति।।33।।

अनुवाद: (भूतानि) सभी प्राणी (प्रकृतिम्) प्रकृति अर्थात् स्वभाव को (यान्ति) प्राप्त होते हैं (ज्ञानवान्) ज्ञानवान् (अपि) भी (स्वस्याः) अपने निष्कर्ष द्वारा निकाले भक्ति मार्ग के आधार से (प्रकृृतेः) स्वभावके (सदृृशम्) अनुसार (चेष्टते) चेष्टा करता है (निग्रहः) हठ (किम्) क्या (करिष्यति) करेगा? (33)

विशेष:- स्वभाव वश सर्व प्राणी धार्मिक कर्म करते हैं। कहने से भी नहीं मानते। वे राक्षस स्वभाव के व्यक्ति शास्त्रा विधि रहित अर्थात् मेरे मत के विपरीत मनमाना आचरण करते हैं:- प्रमाण गीता अध्याय 16 व 17 में।

विचार करें:-- अध्याय 3 के श्लोक 33, 34, 35 का भाव है कि सर्व प्राणी प्रकृति(माया) के वश ही हैं। स्वभाववश कर्म करते हैं। ऐसे ही ज्ञानी भी अपनी आदत वश कर्म करते हैं फिर हठ क्या करेगा।

सार: -- शिक्षित व्यक्ति जो तत्वज्ञान हीन हैं अपनी गलत पूजा को नहीं त्यागते चाहे कितना आग्रह करें, चाहे सद्ग्रन्थों के प्रमाण भी दिखा दिए जाऐं वे नहीं मानते। कुछ ज्ञानी-विद्वान पुरुष मान वश पैसा प्राप्ति व अधिक शिष्य बनाने की इच्छा से सच्चाई का अनुसरण नहीं करते। उन तत्वज्ञान हीन सन्तों के अशिक्षित शिष्य व शिक्षित शिष्य प्रमाण देखकर भी उन अज्ञानी सन्तों को नहीं त्यागते सत्य साधना ग्रहण नहीं करते वे मूढ़ हैं। दोनों (ज्ञानी व अज्ञानी) स्वभाव वश चल रहे हैं। इसलिए भक्ति मार्ग गलत दिशा पकड़ चुका है तथा इन दोनों को समझाना व्यर्थ है।

गरीब, चातुर प्राणी चोर हैं, मूढ मुग्ध हैं ठोठ। संतों के नहीं काम के, इनकूं दे गल जोट।।