Na, aham’, prakaashH, sarvasya, yogmayasmaavrtH,
MoodH, ayam’,na, abhijaanaati, lokH, mam’, ajam’, avyyam’ ||25||
Translation: (Aham’) I (yogmaya smaavrtH) hidden by Yogmaya (sarvasya) everyone (PrakaashH) appear before (na) do not i.e. remain invisible, therefore (mam’) me (ajam’) of not taking birth (avyyam’) eternal, unchanging character (ayam’) this (moodH) ignorant (lokH) world – living beings (na) not (abhijaanaati) knows i.e. considers me to have come in incarnation form. (25)
I, hidden by Yogmaya, do not appear before anyone i.e. remain invisible; therefore, this ignorant world (living beings) does not know me and my eternal, unchanging character of not taking birth i.e. considers me to have come in incarnation form. Because Brahm makes his numerous forms with his word power; he is Durga’s husband, therefore, is saying in this Shlok that I do not take birth from Durga like Shri Krishna etc.
In Gita Adhyay 7 Shlok 24-25, God, the giver of the knowledge of Gita, is saying about himself that I remain (avyakt) invisible/unmanifested i.e. remain hidden by my Yogmaya i.e. supernatural power. I do not appear before everyone in my actual Kaal form. This is First ‘Avyakt’ (unmanifested). Then in Gita Adhyay 8 Shlok 18, it is said that all these living beings merge into the Avyakt at the time of destruction. Please think, this is Second ‘Avyakt’. Then, it is mentioned in Gita Adhyay 8 Shlok 20 that other than that ‘Avyakt’ God i.e. ParBrahm, the second ‘Avyakt’ i.e. hidden God does not get destroyed even after the destruction of all the living beings. That Eternal ‘Avyakt’ i.e. that Primeval invisible God is the Third ‘Ayakt’ God. It is stated in Gita Adhyay 8 Shlok 21 that, that hidden God is known as Eternal ‘Avyakt’; after going to which God, the living beings do not return to this world. That place is actually the real place of salvation. That place is superior to my, i.e. the giver of the knowledge of Gita, i.e. to Brahm lok. Please think, this third Avyakt (unmanifested) i.e. hidden God has been proved who is immortal in reality. This evidence is in Gita Adhyay 15 Shlok 1-4 and 16-17, in which there is clear description of three gods. One is Kshar Purush i.e. Brahm, second is Akshar Purush i.e. ParBrahm and third is Param Akshar Brahm i.e. Purna Brahm. The evidence of Param Akshar Brahm is in Gita Adhyay 8 Shlok 1 to 3.
न, अहम्, प्रकाशः, सर्वस्य, योगमायासमावृतः।
मूढः, अयम्, न, अभिजानाति, लोकः, माम्, अजम्, अव्ययम्।।25।।
अनुवाद: (अहम्) मैं (योगमाया समावृतः) योगमायासे छिपा हुआ (सर्वस्य) सबके (प्रकाशः) प्रत्यक्ष (न) नहीं होता अर्थात् अदृश्य रहता हूँ इसलिये(माम्) मुझ (अजम्) जन्म न लेने वाले (अव्ययम्) अविनाशी अटल भावको (अयम्) यह (मूढः) अज्ञानी (लोकः) जनसमुदाय संसार (न) नहीं (अभिजानाति) जानता अर्थात् मुझको अवतार रूप में आया समझता है। क्योंकि ब्रह्म अपनी शब्द शक्ति से अपने नाना रूप बना लेता है, यह दुर्गा का पति है इसलिए इस श्लोक में कह रहा है कि मैं श्री कृष्ण आदि की तरह दुर्गा से जन्म नहीं लेता। (25)
केवल हिन्दी अनुवाद: मैं योगमायासे छिपा हुआ सबके प्रत्यक्ष नहीं होता अर्थात् अदृश्य रहता हूँ इसलिये मुझ जन्म न लेने वाले अविनाशी अटल भावको यह अज्ञानी जनसमुदाय संसार नहीं जानता अर्थात् मुझको अवतार रूप में आया समझता है। क्योंकि ब्रह्म अपनी शब्द शक्ति से अपने नाना रूप बना लेता है, यह दुर्गा का पति है इसलिए इस श्लोक में कह रहा है कि मैं श्री कृष्ण आदि की तरह दुर्गा से जन्म नहीं लेता। (25)
विशेष:- गीता अध्याय 7 श्लोक संख्या 24.25 में गीता ज्ञान दाता प्रभु अपने विषय में कह रहा है कि मैं अव्यक्त रहता है अर्थात् मैं अपनी योग माया अर्थात् सिद्धी शक्ति से छिपा रहता हूँ। सर्व के समक्ष अपने वास्तविक काल रूप में नहीं आता। यह प्रथम अव्यक्त हुआ। फिर गीता अध्याय 8 श्लोक 18 में कहा है कि ये सर्व प्राणी प्रलय के समय अव्यक्त में लीन हो जाते हैं। विचार करें यह दूसरा अव्यक्त हुआ। फिर गीता अध्याय 8 श्लोक 20 में कहा है कि उस अव्यक्त प्रभु से अर्थात् परब्रह्म से दूसरा अव्यक्त अर्थात् गुप्त परमात्मा तो सर्व प्राणियों के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता वह सनातन अव्यक्त अर्थात् वह आदि परोक्ष प्रभु तीसरा अव्यक्त परमात्मा है। गीता अध्याय 8 श्लोक 21 में कहा है कि उस गुप्त परमात्मा को अविनाशी अव्यक्त कहा जाता है। जिस परमात्मा के पास जाने के पश्चात् प्राणी फिर लौटकर संसार में नहीं आते वह स्थान वास्तव में पूर्ण मोक्ष स्थल है। वह स्थान मेरे अर्थात् गीता ज्ञान दाता के स्थान अर्थात् ब्रह्म लोक से श्रेष्ठ है। विचार करें यह तीसरा अव्यक्त अर्थात् गुप्त प्रभु सिद्ध हुआ जो वास्तव में अविनाशी है। यह प्रमाण गीता अध्याय 15 श्लोक 1.4 व 16.17 में है। जिसमें तीन परमात्माओं का वर्णन स्पष्ट है। एक क्षर पुरूष अर्थात् ब्रह्म दूसरा अक्षर पुरूष अर्थात् परब्रह्म तथा तीसरा परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् पूर्ण ब्रह्म परम अक्षर ब्रह्म का प्रमाण गीता अध्याय 8 श्लोक 1 तथा 3 में है।