Chapter 9 Verse 32

Chapter 9 Verse 32

Mam, hi, paarth, vypaashritya, ye, api, syuH, paapyonyaH,
StriyaH, vaishyaH, tatha, shoodraH, te, api, yaanti, paraam, gatim ||32||

Translation: (Hi) because (Paarth) Oh Paarth! (ye) who (api) also (mam) me (vypaashritya) dependent (syuH) become (paapayonyaH) sinful birth i.e. most sinful (striyaH vaishyaH) a prostitute woman (tatha) and (shoodraH) Shudra / a person of lower caste (te) they all (api) also (paraam gatim) Supreme salvation / complete salvation (yaanti) attain. (32)

Translation

Because oh Paarth! Whoever become dependent on me, in sinful birth i.e. the most sinful prostitute woman and a Shudra (a person of a lower caste), they all also attain supreme salvation.

Important

In this above-mentioned Shlok, the giver of the knowledge of Gita has said that on being dependent on me, one attains supreme salvation i.e. complete salvation. The reason is, that for complete salvation there is mention of jaap of three mantras Om´-Tat´-Sat´ in Gita Adhyay 17 Shlok 23, by which supreme salvation i.e. complete salvation is possible. In this the mantra Om´ is of the speaker of the knowledge of Gita. Therefore, by being dependent on this Om´ mantra i.e. on the speaker of the knowledge of Gita only, complete salvation is attained. That is why the speaker of the knowledge of Gita has decribed his salvation as very inferior/bad in Gita Adhyay 7 Shlok 18. And in Gita Adhyay 18 Shlok 62 and Adhyay 15 Shlok 4 has directed to go in the refuge of Supreme God other than him.


माम्, हि, पार्थ, व्यपाश्रित्य, ये, अपि, स्युः, पापयोनयः,
स्त्रिायः, वैश्याः, तथा, शूद्राः, ते, अपि, यान्ति, पराम्, गतिम्।।32।।

अनुवाद: (हि) क्योंकि  जो (अपि) भी (माम्) मुझ पर (व्यापाश्रित्य) आश्रित (स्युः) होवें (पापयोनयः) पापयोनि अर्थात् महा पापी (स्त्रिायः वैश्याः) वैश्या स्त्राी (तथा) और (शूद्राः) शुद्र (ते) वे सब (अपि) भी (पराम गतिम्) परमगति को (यान्ति) प्राप्त हो जाते हैं। (32)  

विशेष:- इस उपरोक्त श्लोक में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि मेरे आश्रित होकर परमगति अर्थात् पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है। कारण है कि पूर्ण मोक्ष के लिए गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में तीन मन्त्रा ओम्-तत्-सत् के जाप का वर्णन किया है। जिस से परमगति अर्थात् पूर्ण मोक्ष सम्भव है। इसमें ओम् मन्त्रा गीता ज्ञान दाता का है। इसलिए इस ओम् मन्त्रा का अर्थात् गीता ज्ञान दाता का आश्रय लेकर ही परम गति प्राप्त होती है। इसी लिए गीता ज्ञान दाता ने अपनी गति को गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में अति अनुत्तम बताया है इसीलिए गीता अध्याय 18 श्लोक 62 व अध्याय 15 श्लोक 4 में अपने से अन्य परमेश्वर की शरण में जाने को कहा है।