Na, ch, matsthaani, bhootaani, pashya, me, yogm’, aishvaram’,
Bhootbhrt’, na, ch, bhootasthH, mm, aatma, bhootbhaavanH ||5||
Translation: (Ch) and (bhootaani) all the living beings (me) in me (matsthaani) situated (na) not (ch) and (na) also not (mm) my (aatma) soul (bhootbhaavanH) the originator of living beings (pashya) consider (aishvaram’) Almighty Supreme God (bhootbhrt’) who is the sustainer of the living beings (yogm’) with the power of inseparable relation (bhootasthH) is situated in the living beings. (5)
And all the living beings are not situated in me and also do not consider my soul as the originator of all the living beings. That Almighty Supreme God, who is the sustainer of all the living beings, is situated in the living beings with a power of inseparable relation. Its evidence is also in Gita Adhyay 15 Shlok 16-17 that the Supreme God is someone else; He sustains the whole universe. This evidence is also in Gita Adhyay 13 Shlok 17 and Adhyay 18 Shlok 61. It is said that the Supreme/Complete God is specially situated in everyone’s heart. He makes all the living beings revolve around like a machine.
न, च, मत्स्थानि, भूतानि, पश्य, मे, योगम्, ऐश्वरम्,
भूतभृत्, न, च, भूतस्थः, मम, आत्मा, भूतभावनः।।5।।
अनुवाद: (च) और (भूतानि) सब प्राणी (मे) मेरे में (मत्स्थानि) स्थित (न) नहीं हैं (च) और (न) न ही (मम) मेरी (आत्मा) आत्मा (भूतभावनः) जीव उत्पन्न करने वाला (पश्य) जान वह (ऐश्वरम्) परम शक्ति युक्त पूर्ण परमात्मा (भूतभृ ृत्) प्राणियों का धारण पोषण करने वाला (योगम्) अभेद सम्बन्ध शक्तिसे (भूतस्थः) प्राणियों में स्थित है। इसी का प्रमाण गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 में भी है कि पूर्ण परमात्मा कोई और है, वह सर्व जगत का पालन-पोषण करता है। यही प्रमाण गीता अध्याय 13 श्लोक 17 अध्याय 18 श्लोक 61 में है कहा है कि पूर्ण परमात्मा सर्व प्राणियों के हृदय में विशेष रूप से स्थित है। वह पूर्ण परमात्मा अपनी शक्ति से सर्व प्राणियों को यन्त्रा की तरह भ्रमण कराता है। (5)