प्रश्न:– हमें तो यह भी ज्ञान नहीं है कि गीता में मोक्ष प्राप्ति का ज्ञान कौन-सा है? हमारे धर्मगुरुओं ने जो भक्ति बताई, उसे श्रद्धा से करते आ रहे हैं। वर्षों से चला आ रहा भक्ति का शास्त्र विरुद्ध प्रचलन सर्वभक्तों को सत्य लग रहा है। क्या गीता में लिखी भक्ति विधि पर्याप्त है?
उत्तर:– गीता में केवल ब्रह्म स्तर की भक्तिविधि लिखी है। पूर्ण मोक्ष के लिए परम अक्षर ब्रह्म की भक्ति करनी होगी। गीता में पूर्ण विधि नहीं है, केवल संकेत है।
जैसे गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में कहा है कि ‘‘सच्चिदानन्द घन ब्रह्म अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म की प्राप्ति के लिए ‘‘ऊँ, तत्, सत्‘‘ इस मन्त्र का निर्देश है। इसके स्मरण की विधि तीन प्रकार से है। इस मन्त्र में ऊँ तो क्षर पुरुष अर्थात् ब्रह्म का मन्त्र तो स्पष्ट है परन्तु ‘‘पर ब्रह्म’’ (अक्षर पुरुष) का मन्त्र ‘‘तत्’’ है जो सांकेतिक है, उपदेशी को तत्वदर्शी सन्त बताएगा। ‘‘सत्’’ यह मन्त्र पूर्ण ब्रह्म (परम अक्षर ब्रह्म) का है जो सांकेतिक है, इसको भी तत्वदर्शी सन्त उपदेशी को बताता है। तत्वदर्शी सन्त के पास पूर्ण मोक्ष मार्ग होता है। जो न वेदों में है, न गीता में तथा न पुराणों या अन्य उपनिषदों में है। तत्वज्ञान की सत्यता को प्रमाणित करने के लिए गीता तथा वेद सहयोगी हैं। जो भक्तिविधि वेद-गीता में है, वही तत्वज्ञान में भी है। सूक्ष्मवेद अर्थात् तत्वज्ञान में वेदों तथा गीता वाली भक्तिविधि तो है ही, इससे भिन्न पूर्ण मोक्ष वाली साधना भी है।
उदाहरण के लिए दसवीं कक्षा का पाठ्यक्रम गलत नहीं है, परंतु अधूरा है। BA, MA वाले सलेबस में दसवीं वाला ज्ञान भी होता है, उससे आगे का भी होता है। यही दशा वेदों-गीता तथा सूक्ष्मवेद के ज्ञान में अंतर की जानें।