प्रश्न:– मन में एक शंका है कि क्या भगवान विष्णु जी की भक्ति अच्छी नहीं?
उत्तर:- श्रीमद् भगवत् गीता अध्याय 2 श्लोक 46 में प्रमाण है कि गीता ज्ञान दाता ने कहा हे अर्जुन! बहुत बड़े जलाश्य (झील) की प्राप्ति के पश्चात् छोटे जलाश्य में व्यक्ति का कितना प्रयोजन रह जाता है। इसी प्रकार पूर्ण ज्ञान और पूर्ण परमात्मा की भक्ति विद्या व होने वाले लाभ का ज्ञान होने के पश्चात् अन्य ज्ञानों तथा छोटे भगवानों में उतनी ही आस्था रह जाती है जितनी बड़े जलाश्य की प्राप्ति के पश्चात् छोटे जलाश्य में रह जाती है। छोटे जलाश्य का जल अच्छा है, परन्तु पर्याप्त नहीं है। यदि एक वर्ष वर्षा न हो तो छोटे जलाश्य का जल सूख जाता है तथा उस पर आश्रित व्यक्ति भी जल के अभाव से कष्ट उठाते हैं, त्राहि-त्राहि मच जाती है। परन्तु बड़े जलाश्य (झील) का जल यदि 10 वर्ष भी वर्षा न हो तो भी समाप्त नहीं होता। जिस व्यक्ति को वह बड़ा जलाश्य मिल जाएगा तो वह तुरन्त छोटे जलाश्य (जोहड़ = तालाब) को छोड़कर बड़े जलाश्य के किनारे जा बसेगा। जिस समय गीता ज्ञान सुनाया गया, उस समय सर्व व्यक्ति तालाबों के जल पर ही आश्रित थे। इसलिए यह उदाहरण दिया था, इसी प्रकार श्री विष्णु सतगुण की भक्ति भले ही अच्छी है, परन्तु पूर्ण मोक्षदायक नहीं है। श्री विष्णु जी भी नाशवान हैं। इनका भी जन्म-मृत्यु होता है। फिर साधक अमर कैसे हो सकता है? इसलिए पूर्ण मोक्ष अर्थात् अमर होने के लिए अमर परमात्मा की ही भक्ति करनी पड़ेगी।