15. गीता ज्ञान दाता ने अपनी गति को अनुत्तम क्यों कहा

15. गीता ज्ञान दाता ने अपनी गति को अनुत्तम क्यों कहा

प्रश्न: गीता ज्ञान दाता ने अपनी गति को अनुत्तम क्यों कहा?

उत्तर: गीता ज्ञान दाता ने अध्याय 2 श्लोक 12 गीता अध्याय 4 श्लोक 5, गीता अध्याय 10 श्लोक 2 में कहा है कि अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं। तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ। मेरी उत्पत्ति को ऋषि-महर्षि तथा देवता नहीं जानते। तू और मैं तथा ये राजा व सैनिक बहुत बार पहले भी जन्मे हैं, आगे भी जन्मेंगे। पाठक जन विचार करें! जब ब्रह्म कह रहा है कि मेरा भी जन्म-मरण होता है तो ब्रह्म के पुजारी को गीता अध्याय 15 श्लोक 4 वाली गति (मोक्ष) प्राप्त नहीं हो सकती जिसमें जन्म-मरण सदा के लिए समाप्त हो जाता है।जब तक जन्म-मरण है, तब तक परमशान्ति नहीं हो सकती। उसके लिए गीता ज्ञानदाता ने असमर्थता व्यक्त की है। गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है कि परमशान्ति के लिए उस परमेश्वर (परम अक्षर ब्रह्म) की शरण में जा, उसी की कृप्या से ही तू परमशान्ति को तथा सनातन परम धाम को प्राप्त होगा। गीता अध्याय 8 श्लोक 5 व 7 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि मेरी भक्ति करेगा तो युद्ध भी करना पड़ेगा, जहाँ युद्ध है, वहाँ शान्ति नहीं होती, परम शान्ति का घर दूर है। इसलिए गीता ज्ञान दाता ने अपनी गति को (ऊँ नाम के जाप से होने वाला लाभ) अनुत्तम (घटिया) बताया है।