Chapter 8 Verse 15

Chapter 8 Verse 15

Mam, upetya, punarjanm, duHkhaalyam, ashaashvatam,
Na, aapnuvanti, mahaatmaanH, sansiddhim, parmaam, gataaH ||15||

Translation: (Mam) me (upetya) the worshipper who has attained (ashaahvatam) short-lived (duHkhaalyam) abode of sorrow (punarjanm) is in repeated birth-death (parmaam) highest i.e. obtained from the worship of the Complete God (sansiddhim) spiritual success (gataaH) who have attained (mahaatmaanH) Mahatmas (na) not (aapnuvanti) attain/have. This same evidence is in Gita Adhyay 2 Shlok 12, Adhyay 4 Shlok 5 and 9, Gita Adhyay 15 Shlok 4, and Adhyay 18 Shlok 62, in which it is said that You and I have had several births and deaths, but only after attaining that Supreme God, a worshipper forever becomes free from birth-death. He then never returns to this short-lived world.  (15)

Translation

The worshipper who has attained me is in short-lived abode of sorrow, repeated birth-death. The Mahatmas who have attained the highest spiritual success i.e. which is obtained from the worship of the Complete God, they do not have birth-death.

This same evidence is in Gita Adhyay 2 Shlok 12, Adhyay 4 Shlok 5 and 9, Gita Adhyay 15 Shlok 4, and Adhyay 18 Shlok 62, in which it is said that You and I have had several births and deaths, but only after attaining that Supreme God, a worshipper forever becomes free from birth-death. He then never returns to this short-lived world.


माम्, उपेत्य, पुनर्जन्म, दुःखालयम्, अशाश्वतम्,
न, आप्नुवन्ति, महात्मानः, संसिद्धिम्, परमाम्, गताः।।15।।

अनुवाद: (माम्) मुझको (उपेत्य) प्राप्त साधकतो(अशाश्वतम्) क्षणभंगुर (दुःखालयम्) दुःख के घर (पुनर्जन्म) बार-बार जन्म-मरण में हैं (परमाम्) परम अर्थात् पूर्ण परमात्मा की साधना से होने वाली (संसिद्धिम) सिद्धिको (गताः) प्राप्त (महात्मानः) महात्माजन (न) नहीं (आप्नुवन्ति) प्राप्त होते। यही प्रमाण गीता अध्याय 2 श्लोक 12 , अध्याय 4 श्लोक 5 व 9 तथा गीता अध्याय 15 श्लोक 4 अध्याय 18 श्लोक 62 में है जिनमें कहा है कि मेरे तथा तेरे अनेकों जन्म व मृत्यु हो चुके हैं परन्तु उस परमेश्वर को प्राप्त करके ही साधक सदा के लिए जन्म मरण से मुक्त हो जाता है वह फिर लौट कर इस क्षण भंगुर लोक में नहीं आता(15)

केवल हिन्दी अनुवाद: मुझको प्राप्त साधकतो क्षणभंगुर दुःख के घर बार-बार जन्म-मरण में हैं परम अर्थात् पूर्ण परमात्मा की साधना से होने वाली सिद्धिको प्राप्त महात्माजन नहीं प्राप्त होते। यही प्रमाण गीता अध्याय 2 श्लोक 12 , अध्याय 4 श्लोक 5 व 9 तथा गीता अध्याय 15 श्लोक 4 अध्याय 18 श्लोक 62 में है जिनमें कहा है कि मेरे तथा तेरे अनेकों जन्म व मृत्यु हो चुके हैं परन्तु उस परमेश्वर को प्राप्त करके ही साधक सदा के लिए जन्म मरण से मुक्त हो जाता है वह फिर लौट कर इस क्षण भंगुर लोक में नहीं आता(15)