AvyaktH, aksharH, iti, uktH, tam, aahuH, parmaam, gatim,
Yam, praapya, na, nivartante, tat dhaam, parmm, mm ||21||
Translation: (AvyaktH) invisible i.e. hidden (aksharH) eternal (iti) by this name (uktH) called (tam) the place hidden in the darkness of ignorance (parmaam, gatim) supreme state (aahuH) is called (yam) which (praapya) having attained, men (na, nivartante) do not return (tat dhaam) that lok (parmm, mm) is superior to me and my lok. (21)
That which is called by the name invisible and eternal, the place hidden in the darknes of ignorance is called the supreme state, having attained which, men do not return. That lok/place is superior to me and my lok.
Because Kaal (Brahm) has been expelled from Satyalok, therefore, is saying that even my real place is Satyalok. Even I used to live there earlier. And it is superior to my lok. Having gone where, one does not return in birth-death i.e. attains complete salvation.
In Gita Adhyay 8 Shloks 18, 20, 21, 22, there is description of two Gods. In Shlok 18, it is said that all the living beings vanish into this (avyakt) unmanifested God i.e. ParBrahm at the time of destruction, and then are born at the time of origin. In Shlok 20-21, it is said that other than that unmanifested i.e. ParBrahm the second unmanifested God is Purna Brahm, having gone to whom, living beings do not return to this world i.e. attain complete salvation. One unmanifested is in Gita Adhyay 7 Shlok 24-25. In this way, three Gods have been proved. This very evidence is in Gita Adhyay 15 Shlok 1 to 4 and 16 and 17.
अव्यक्तः, अक्षरः, इति, उक्तः, तम्, आहुः, परमाम्, गतिम्।
यम्, प्राप्य, न, निवर्तन्ते, तत् धाम, परमम्, मम्।।21।।
अनुवाद: (अव्यक्तः) अदृश अर्थात् परोक्ष (अक्षरः) अविनाशी (इति) इस नामसे (उक्तः) कहा गया है (तम्) अज्ञान के अंधकार में छुपे गुप्त स्थान को (परमाम्, गतिम्) परमगति (आहुः) कहते हैं (यम्) जिसे (प्राप्य) प्राप्त होकर मनुष्य (न, निवर्तन्ते) वापस नहीं आते (तत् धाम) वह लोक (परमम् मम्) मुझ से व मेरे लोक से श्रेष्ठ है। (21)
केवल हिन्दी अनुवाद: अदृश अर्थात् परोक्ष अविनाशी इस नामसे कहा गया है अज्ञान के अंधकार में छुपे गुप्त स्थान को परमगति कहते हैं जिसे प्राप्त होकर मनुष्य वापस नहीं आते वह लोक मुझ से व मेरे लोक से श्रेष्ठ है। (21)
क्योंकि काल (ब्रह्म) सत्यलोक से निष्कासित है, इसलिए कह रहा है कि मेरा भी वास्तविक स्थान सत्यलोक है। मैं भी पहले वहीं रहता था तथा मेरे लोक से श्रेष्ठ है। जहाँ जाने के पश्चात् वापिस जन्म-मत्यु में नहीं आते अर्थात् पूर्ण मोक्ष प्राप्त करते हैं।
गीता अध्याय 8 श्लोक 18, 20, 21, 22 अध्याय 8 के श्लोकों में दो परमात्माओं का वर्णन है। श्लोक 18 में कहा है कि सर्व प्राणी इस अव्यक्त परमात्मा अर्थात् परब्रह्म में प्रलय समय लीन हो जाते है। फिर उत्पत्ति समय उत्पन्न हो जाते हैं। श्लोक 20-21 में कहा है कि उस अव्यक्त अर्थात् परब्रह्म से दूसरा अव्यक्त परमात्मा अर्थात् पूर्ण ब्रह्म है जहाँ जाने के पश्चात् प्राणी फिर लौट कर संसार में नहीं आते। अर्थात् पूर्ण मोक्ष प्राप्त करते हैं। एक अव्यक्त गीता अध्याय 7 श्लोक 24-25 में है। इस प्रकार तीन परमात्मा सिद्ध हुए। यही प्रमाण गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 तथा 16 व 17 में है।