Chapter 8 Verse 6

Chapter 8 Verse 6

Yam, yam, va, api, smaran, bhaavm, tyajati, ante, kalevaram,
Tam, tam, ev, eti, kauntey, sadaa, tadbhaavbhaavitH ||6||

Translation: (Kauntey) Oh son of Kunti, Arjun! This man (ante) at the time of death (yam, yam) which (va, api) ever (bhaavm) form (smaran) while remembering i.e. worshipping whichever god (kalevaram) of body (tyajati) gives up (tam, tam) that (ev) only (eti) goes to, because he (sadaa) always (tadbhaavbhaavitH) attains the same nature of bhakti i.e. nature. (6)

Translation

Oh son of Kunti, Arjun! While remembering whichever form i.e. whichever god, this man gives up his body at the time of death, he goes to that only because he always attains the same nature of bhakti i.e. nature.


यम्, यम्, वा, अपि, स्मरन्, भावम्, त्यजति, अन्ते, कलेवरम्,
तम्, तम्, एव, एति, कौन्तेय, सदा, तद्भावभावितः।।6।।

अनुवाद: (कौन्तेय) हे कुन्तीपुत्रा अर्जुन! यह मनुष्य (अन्ते) अन्तकालमें (यम् यम्) जिस-जिस (वा, अपि) भी (भावम्) भावको (स्मरन्) सुमरण करता हुआ अर्थात् जिस भी देव की उपासना करता हुआ (कलेवरम्) शरीरका (त्यजति) त्याग करता है (तम् तम्) उस-उसको (एव) ही (एति) प्राप्त होता है क्योंकि वह (सदा) सदा (तद्भावभावितः) उसी भक्ति भाव को अर्थात् स्वभाव को प्राप्त होता है। (6)

केवल हिन्दी अनुवाद: हे कुन्तीपुत्रा अर्जुन! यह मनुष्य अन्तकालमें जिस-जिस भी भावको सुमरण करता हुआ अर्थात् जिस भी देव की उपासना करता हुआ शरीरका त्याग करता है उस-उसको ही प्राप्त होता है क्योंकि वह सदा उसी भक्ति भाव को अर्थात् स्वभाव को प्राप्त होता है। (6)

(श्लोक 7 में गीता ज्ञान दाता ने अपनी भक्ति करने को कहा है)