प्रश्न: ओम् (ऊँ) यह मन्त्र तो ब्रह्म का जाप हुआ, फिर यह क्यों कह रहे हो कि ब्रह्म की भक्ति से पूर्ण मोक्ष नहीं होता। आपने बताया कि गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में ’’ऊँ तत् सत्’’ इस मन्त्र के जाप से पूर्ण मोक्ष होता है। इस मन्त्र में भी तो ओम् (ऊँ) मन्त्र है।
उत्तर: जैसे इन्जीनियर या डाॅक्टर बनने के लिए शिक्षा की आवश्यकता होती है। पहले प्रथम कक्षा पढ़नी पड़ती है, फिर दूसरी, इस प्रकार दसवीं कक्षा पास करनी पड़ती है। उसके पश्चात् आगे पढ़ाई करनी होती है। फिर ट्रैनिंग करके इन्जीनियर या डाॅक्टर बना जाता है। ठीक इसी प्रकार श्री ब्रह्मा, विष्णु, शिव, गणेश तथा देवी की साधना करनी पड़ती है, मैं स्वयं करता हूँ तथा अपने अनुयाइयों से कराता हूँ। यह तो पाँचवी कक्षा तक की पढ़ाई अर्थात् साधना जानें, ब्रह्म की साधना दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई जानें अर्थात् ब्रह्मलोक तक की साधना है जो ‘‘ऊँ‘‘ (ओम्) का जाप करना है और अक्षर पुरुष की साधना को 14वीं कक्षा की पढ़ाई अर्थात् साधना जानो जो ‘‘तत्’’ मन्त्र का जाप है। ‘‘तत्’’ मन्त्र तो सांकेतिक है, वास्तविक मन्त्र तो इससे भिन्न है जो उपदेशी को ही बताया जाता है।
परम अक्षर पुरुष की साधना इन्जीनियर या डाॅक्टर की पढ़ाई अर्थात् साधना जानो जो ‘‘सत्’’ शब्द से करनी होती है। यह ‘‘सत्’’ मन्त्र भी सांकेतिक है। वास्तविक मन्त्रा भिन्न है जो उपदेशी को बताया जाता है। इसको सारनाम भी कहते हैं।
इसलिए अकेले ‘‘ब्रह्म’’ के नाम ओम् (ऊँ) से पूर्ण मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता। ‘‘ऊँ‘‘ नाम का जाप ब्रह्म का है। इसकी साधना से ब्रह्म लोक प्राप्त होता है जिसके विषय में गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में कहा है कि ब्रह्म लोक में गए साधक भी पुनर्जन्म को प्राप्त होते हैं। पुनर्जन्म है तो पूर्ण मोक्ष नहीं हुआ जो गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि परमात्मा के उस परमपद की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के पश्चात् साधक कभी लौटकर पुनर्जन्म में नहीं आता। वह पूर्ण मोक्ष पूर्ण गुरु से शास्त्रानुकूल भक्ति प्राप्त करके ही संभव है। विश्व में वर्तमान में मेेरे (संत रामपाल दास) अतिरिक्त किसी के पास नहीं है।