Saankhyayogau, prthak, baalaaH, pravdanti, na, panditaH,
Ekam, api, aasthitH, samyak, ubhyoH, vindte, falam ||4||
Translation: (Saankhyayogau) on the basis of Tatvgyan, those who do one type of sadhna as a householder or a bachelor, both of them (prthak) obtain different results, this (baalaaH) ignorant (pravdanti) say. They (panditaH) Pandit (api) also (na) are not (ekam) in one Almighty God (samyak aasthitH) truly established persons (ubhyoH) both (falam) same results (vindte) obtain on the basis of Tatvgyan. (4)
Ignorants say that on the basis of Tatvgyan, those who do one type of sadhna as a householder or a bachelor, both of them obtain different results. They are not even Pandits. Individuals who are truly established in one Almighty God, they both on the basis of Tatvgyan obtain same results. There is vivid description in Gita Adhyay 13 Shlok 24-25.
The meaning is that some by making their own guesses say that those who do sadhna according to the holy scriptures and who have not got married i.e. who do sadhna by remaining bachelor at home or in an ashram etc, such Karmyogis are superior. Some say that it is superior to do sadhna while performing actions after getting married and living with children. They both are ignorants because only a Tatvdarshi saint will distinctly describe the true knowledge that through scripture-based sadhna both of them obtain the same results. There is mention of a Tatvdarshi saint in Gita Adhyay 4 Mantra 34 and the identity of a Tatvdarshi saint is also given in Gita Adhyay 15 Mantra 1 to 4 and Yajurveda Adhyay 40 Mantra 10 and 13 that only a Tatvdarshi saint tells the law of Purna Parmatma (Complete God); listen from him.
साङ्ख्ययोगौ, पृथक्, बालाः, प्रवदन्ति, न, पण्डिताः,
एकम्, अपि, आस्थितः, सम्यक्, उभयोः, विन्दते, फलम्।।4।।
अनुवाद: (साङ्ख्ययोगौ) तत्वज्ञान के आधार से गृहस्थी व ब्रह्मचारी रहकर जो एक ही प्रकार की साधना करते हैं उन दोनों को (प्रथक्) प्रथक.2 फल प्राप्त होता है एैसा(बालाः) नादान (प्रवदन्ति) कहते हैं। वे (पण्डिताः) पण्डित (अपि) भी (न) नहीं हैं (एकम्) एक सर्व शक्तिमान परमेश्वर पर (सम्यक् आस्थितः) सम्यक् प्रकार से स्थित पुरुष (उभयोः) दोनों (फलम्)समान फलरूप को (विन्दते) तत्वज्ञान आधार से ही प्राप्त करते हैं गीता अध्याय 13 श्लोक 24-25 में विस्तृत वर्णन है। (4)
भावार्थ है कि जो अपनी अटकलों को लगा कर कोई कहते हैं कि शास्त्रा विधि अनुसार साधना करने वाले जिन्होंने शादी नहीं करवाई है अर्थात् ब्रह्मचारी रहकर घर पर या आश्रम आदि में साधना करने वाले कर्म योगी श्रेष्ठ हैं। कोई कहते हैं कि शादी करवाकर बाल बच्चों में रहकर कर्म करते करते साधना करना श्रेष्ठ है, वे दोनों ही नादान हैं, क्योंकि वास्तविक ज्ञान अर्थात् तत्वज्ञान तो तत्वदर्शी संत ही सही भिन्न-भिन्न बताएगा कि शास्त्राविधि अनुसार साधना से दोनों को समान फल प्राप्त होता है। तत्वदर्शी सन्त का गीता अध्याय 4 मंत्र 34 में वर्णन है तथा तत्वदर्शी संत की पहचान गीता अध्याय 15 मंत्र 1 से 4 में यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 10 व 13 में भी कहा है कि पूर्ण परमात्मा के विद्यान को तत्वदर्शी सन्त ही बताता है उस से सुनों।