Chapter 5 Verse 5

Chapter 5 Verse 5

Yat, saankhyaeH, praapyate, sthaanm, tat, yogaeH, api, gamyate,
Ekam, saankhyam, ch, yogam, ch, yaH, pashyati, saH, pashyati ||5||

Translation: By doing sadhna according to the injunctions of the scriptures (SaankhyaeH) by the Tatvgyanis (yat) which (sthaanm) place i.e. Satyalok (praapyate) is attained (yogaeH) after taking updesh from Tatvdarshis; by ordinary persons i.e. Karmyogis (api) also (tat) same (gamyate) place, Satyalok is attained. (ch) and therefore (yaH) one who (saankhyam) Gyanyog / Yog of knowledge (ch) and (yogam) Karmyog / yog of action, in form of result (ekam) one (pashyati) sees (saH) only he, reality (pashyati) sees i.e. he actually knows the path of bhakti. (5)

Translation

By doing sadhna according to the injunctions of the scriptures the place which is attained by the Tatvgyanis, that same place is also attained by ordinary persons i.e. Karmyogis after taking updesh from Tatvdarshis. Therefore one who sees Gyanyog and Karmyog as one in the form of result, he only sees the reality; which means he actually knows the path of bhakti.

Important

The meaning of Adhyay 5 Shlok 4-5 is that some say that one who has acquired knowledge, only he does not marry and remains a bachelor throughout life and only he can get across, whether he lives at home, or in a monastery. Reason being, that person after acquiring some knowledge, starts properly teaching other inquisitive souls by giving examples. Then the innocent souls think that he has become a highly learned person. He is definitely through. When will our, householder’s, turn come? A few say that one who lives with children, he only attains welfare. Reason being, a household person performs charity-meritorious acts, therefore he is superior. Hence, it is said that those who express both these kinds of views are children; do not consider them to be learned. Only a Complete Saint, who is Tatvdarshi, delivers the true knowledge that both types of above-mentioned devotees, who perform scripture-based sadhna within the bounds of the Guru, have same achievements. A devotee, who will understand this explanation, will not get confused by anyone’s talks. A bhakt who performs sadhna while remaining a bachelor and imparts knowledge to others, then someone praises him that he is very knowledgeable, but familiar with Tatvgyan he knows that the knowledge has been given by Satguru. One will attain salvation not by knowledge but by doing naam jaap[1] and by remaining within bounds of the Guruji. Similarly, one, who is a householder, also knows that although this Bhakt ji knows four mantras and a few sacred speeches, and others are pointlessly praising him, both of these are ignorants. Salvation will only be possible by naam jaap and by remaining within Guru Maryada[2], otherwise, both will incur sin and will become devoid of bhakti. He who has understood this, whether he is a brahmchaari (practices celibacy) or a householder, they both know the reality. The following mantras are mentioned in relation to that devotee who performs sadhna after understanding that real knowledge.


यत्, साङ्ख्यैः, प्राप्यते, स्थानम्, तत्, योगैः, अपि, गम्यते,
एकम्, साङ्ख्यम्, च, योगम्, च, यः, पश्यति, सः, पश्यति।।5।।

अनुवाद: शास्त्रा विधि अनुसार साधना करने से (साङ्ख्यैः) तत्वज्ञानियों द्वारा (यत्) जो (स्थानम्) स्थान अर्थात् सत्यलोक (प्राप्यते) प्राप्त किया जाता है (योगैः) तत्वदर्शीयों से उपदेश प्राप्त करके साधारण गृहस्थी व्यक्तियों अर्थात् कर्मयोगियोंद्वारा (अपि) भी (तत्) वही (गम्यते) सत्यलोक स्थान प्राप्त किया जाता है (च) और इसलिए (यः) जो पुरुष (साङ्ख्यम्) ज्ञानयोग (च) और (योगम्) कर्मयोगको फलरूपमें (एकम्) एक (पश्यति) देखता है (सः) वही यथार्थ (पश्यति) देखता है अर्थात् वह वास्तव में भक्ति मार्ग जानता है (5)

विशेष:- उपरोक्त अध्याय 5 मंत्रा 4-5 का भावार्थ है कि कोई तो कहता है कि जिसको ज्ञान हो गया है वही शादी नहीं करवाता तथा आजीवन ब्रह्मचारी रहता है वही पार हो सकता है। वह चाहे घर रहे, चाहे किसी आश्रम में रहे। कारण वह व्यक्ति कुछ ज्ञान प्राप्त करके अन्य जिज्ञासुओं को अच्छी प्रकार उदाहरण देकर समझाने लग जाता है। तो भोली आत्माऐं समझती हैं कि यह तो बहुत बड़ा ज्ञानी हो गया है। यह तो पार है, हमारा गृहस्थियों का नम्बर कहाँ है। कुछ एक कहते हैं कि बाल-बच्चों में रहता हुआ ही कल्याण को प्राप्त होता है। कारण गृहस्थ व्यक्ति दान-धर्म करता है, इसलिए श्रेष्ठ है। इसलिए कहा है कि वे तो दोनों प्रकार के विचार व्यक्त करने वाले बच्चे हैं, उन्हें विद्वान मत समझो। वास्तविक ज्ञान तो पूर्ण संत जो तत्वदर्शी है, वही बताता है कि शास्त्रा विधि अनुसार साधना गुरु मर्यादा में रहकर करने वाले उपरोक्त दोनों ही प्रकार के साधक एक जैसी ही प्राप्ति करते हैं। जो साधक इस व्याख्या को समझ जाएगा वह किसी की बातों में आकर विचलित नहीं होता। ब्रह्मचारी रहकर साधना करने वाला भक्त जो अन्य को ज्ञान बताता है, फिर उसकी कोई प्रशंसा कर रहा है कि बड़ा ज्ञानी है, परन्तु तत्व ज्ञान से परिचित जानता है कि ज्ञान तो सतगुरु का बताया हुआ है, ज्ञान से नहीं, नाम जाप व गुरु मर्यादा में रहने से मुक्ति होगी। इसी प्रकार जो गृहस्थी है वह भी जानता है कि यह भक्त जी भले ही चार मंत्रा व वाणी सीखे हुए है तथा अन्य इसके व्यर्थ प्रशंसक बने हैं, ये दोनों ही नादान हैं। मुक्ति तो नाम जाप व गुरु मर्यादा में रहने से होगी, नहीं तो दोनों ही पाप के भागी व भक्तिहीन हो जायेंगे। ऐसा जो समझ चुका है वह चाहे ब्रह्मचारी है या गृहस्थी दोनों ही वास्तविकता को जानते हैं। उसी वास्तविक ज्ञान को जान कर साधना करने वाले साधक के विषय में निम्न मंत्रों का वर्णन किया है।


[1] Recitation or/repetition of mantra

[2] Bounds laid by Guru ji