इस पुस्तक में श्रीमद्भगवत गीता के सम्पूर्ण ज्ञान का यथार्थ प्रकाश किया गया है जो गीता से 18 अध्यायों के 700 श्लोकों का हिन्दी सारांश है। ऐसा आज तक किसी हिन्दू धर्म के गुरू ने तथा गीता के अनुवादकर्ता ने नहीं किया। सबने भोले हिन्दू समाज को भ्रमित करके उल्टा पाठ पढ़ाया है। मेरा मानव समाज से निवेदन है कि इन झूठे गुरूओं की मेरे साथ आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा करवाऐं। तब पता चलेगा ज्ञानी और अज्ञानी का। इस पुस्तक को ध्यानपूर्वक दिल थामकर पढ़ें। आप स्वयं समझ जाओगे कि माजरा क्या है? इसी पुस्तक में लिखी सृष्टि रचना में तथा गीता के सारांश में आप जी को श्री ब्रह्मा, विष्णु, महेश जी के माता-पिता तथा देवी दुर्गा के पति कौन हैं? आदि का ज्ञान भी होगा जिससे आज तक अपने धर्मगुरू नहीं बता पाए जो अपने ही ग्रन्थों में लिखे हैं।
श्रीमद्भगवत गीता चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) का संक्षिप्त रूप है। दूसरे शब्दों में गागर में सागर है। चारों वेदों में अठारह हजार (18000) श्लोक (मंत्र) हैं। उनको गीता में 574 श्लोकों में लिखा है। जिस कारण से गीता में सांकेतिक शब्द अधिक हैं। वैसे तो गीता में सात सौ (700) श्लोक हैं। जिनमें 574 काल ब्रह्म ने श्री कृष्ण के मुख से कहे हैं, शेष श्लोक संजय तथा अर्जुन के कहे हैं जो ज्ञान से संबंधित नहीं हैं।
गीता के सांकेतिक शब्दों को हिन्दू धर्म के धर्मगुरू समझ नहीं पाए। जिस कारण से शब्दों के अर्थों का अनर्थ किया है। उदाहरण के लिए गीता अध्याय 18 श्लोक 66 में ‘‘व्रज’’ शब्द है। उसका अर्थ है जाना, जाओ, चले जाना, दूर जाना। सर्व गीता अनुवादकों ने व्रज का अर्थ ‘‘आना’’ किया है। आप प्रत्येक अनुवादक के किए अनुवाद में इस श्लोक को देखें। एस्कोन वालों ने तो कमाल कर रखा है। गीता अध्याय 18 श्लोक 66 के शब्दार्थ पहले लिखे हैं, नीचे अनुवाद किया है। शब्दार्थ में तो ‘‘व्रज’’ शब्द का अर्थ किया है ‘‘जाओ’’, परंतु अनुवाद में कर दिया ‘‘मेरी शरण में आओ।’’
विचार करें:- अंग्रेजी भाषा के शब्द Go का अर्थ जाना, जाओ है। इस शब्द का अर्थ आना, आओ करना मूर्खता के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। इसी प्रकार गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित सर्व गीता अनुवादकों जैसे श्री जयदयाल गोयन्दका, श्री रामसुख दास जी, महामण्डलेश्वर गीता मनीषी जैसी उपाधि प्राप्त श्री ज्ञानानंद जी, अड़गड़ानंद जी ने तथा अन्य महानुभावों ने गीता के गूढ़ तथा सांकेतिक शब्दों के गूढ़ रहस्य को न समझकर अर्थ न करके अनर्थ किए हैं, गलत अर्थ करके भोली जनता को भ्रमित किया है। इनके द्वारा किए गए गीता के अनुवाद वाली गीता पर प्रतिबंध लगना चाहिए। जिन्होंने गलत अनुवाद किए हैं, उन सबकी अनुवादित गीता से समाज में गीता की गरिमा को ठेस पहुँच रही है तथा गीता का यथार्थ संदेश जनता को नहीं मिल रहा।
जैसे गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में भी गीता ज्ञान बोलने वाला अपने से अन्य परमेश्वर की शरण में जाने के लिए कह रहा है। उसी से संबंधित प्रकरण गीता अध्याय 18 श्लोक 66 में है जिसका अर्थ गलत करके गलत अनुवाद किया है। ऐसी-ऐसी अनेकों गलतियाँ गीता के अनुवाद में मेरे अतिरिक्त सबके द्वारा की गई हैं।
गीता के अनुवादक लिखते हैं कि श्री कृष्ण जी ने गीता का ज्ञान अर्जुन से कहा। श्री कृष्ण को विष्णु जी का अवतार यानि स्वयं विष्णु जी ही माता देवकी के गर्भ से उत्पन्न मानते हैं और श्री विष्णु जी उर्फ श्री कृष्ण जी को अविनाशी कहते हैं। जबकि गीता का ज्ञान कहने वाला गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5, अध्याय 10 श्लोक 2 में अपने को नाशवान कहता है। कहा है कि हे अर्जुन! तेरे और मेरे अनेकों जन्म हो चुके हैं।
श्री देवी पुराण में श्री विष्णु जी स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि मेरा (विष्णु का) श्री ब्रह्मा का तथा श्री शिव का आविर्भाव यानि जन्म तथा तिरोभाव यानि मरण होता है। इसी फोटोकाॅपी में यह भी प्रमाणित है कि इन तीनों को जन्म देने वाली भी देवी दुर्गा
जी यानि अष्टांगी है। हिन्दू धर्म के अज्ञानी धर्मगुरू कहते हैं कि इनके कोई माता-पिता नहीं हैं। इस प्रकार की अनेक मिथ्या कथाऐं शास्त्रों के विपरित बताकर इन अज्ञानियों ने हिन्दू समाज का बेड़ा गरक कर रखा है।
हिन्दू धर्मगुरू कहते हैं कि श्री विष्णु जी सतगुण, श्री शिव जी तमगुण व अन्य देवी-देवताओं की पूजा करो जबकि गीता में अध्याय 7 श्लोक 12-15 तथा 20-23 में कहा है कि इनकी पूजा करने वाले राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच दूषित कर्म करने वाले मूर्ख हैं।
हिन्दू धर्मगुरू श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिव जी को ईश यानि सर्व के स्वामी बताते हैं जबकि श्री शिव महापुराण भाग-1 में विद्येश्वर संहिता पृष्ठ 17-18 अध्याय 9-10 में स्पष्ट है कि सदाशिव यानि काल ब्रह्म श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा शिव जी के पिता जी हैं जो गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में कह रहा है कि मैं काल हूँ। उसने विद्येश्वर संहिता भाग-1 के पृष्ठ 17 पर आपस में लड़ रहे श्री ब्रह्मा जी तथा श्री विष्णु जी के मध्य में तेजोमय स्तम्भ खड़ा करके उनका युद्ध बंद करवाकर कहा कि तुम अपने को संसार का ईश यानि स्वामी कह रहे हो, इस बात पर लड़ रहे हो। तुम ईश (प्रभु=भगवान) नहीं हो। यह सब मेरा है। मेरा एक ॐ (ओम्) मंत्र भक्ति का है जो पाँच अवयवों से एकीभूत होकर यानि अ,उ,म,नाद तथा बिंदु से मिलकर एक ॐ (ओम्) अक्षर बना है। गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में भी इसी ने श्री कृष्ण में प्रेतवत्प्र वेश करके गीता ज्ञान कहा था। उसमें कहा है कि मुझ ब्रह्म का केवल एक ओम् (ॐ)अक्षर है उच्चारण करके स्मरण करने का।
श्री शिव पुराण का प्रकरण बताता हूँ:- शिवपुराण के विद्येश्वर संहिता भाग-1 पर काल ब्रह्म जो उस समय अपने पुत्रा शिव के वेश में उपस्थित था, ने बताया कि हे पुत्रो! मेरे पाँच कृत्य हैं सृष्टि, स्थिति, संहार, तिरोभाव तथा अनुग्रह। हे पुत्रो ब्रह्मा, विष्णु! सृष्टि की उत्पत्ति ब्रह्मा तेरे को तथा पालन करना विष्णु तेरे को मैंने तुम्हारे तप के प्रतिफल में दिए हैं। संहार (सामान्य प्राणियों को मारना) रूद्र को तथा तिरोभाव (भक्तों तथा देवताओं आदि को मारना) महेश को दिए, परंतु ‘‘अनुग्रह’’ कृत्य को पाने में कोई भी समर्थ नहीं है।(1.12)
श्री शिव महापुराण के इस प्रकरण से सिद्ध हुआ कि श्री ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी ईश यानि संसार के स्वामी (प्रभु) नहीं हैं। इन तीनों का पिता काल ब्रह्म है तथा माता श्री देवी (दुर्गा) जी हैं जो श्री देवी भागवत पुराण यानि देवी पुराण में लिखा है। हिन्दू धर्मगुरूजन अपने शास्त्रों से ही परिचित नहीं हैं तो ये गुरू पद के योग्य नहीं हैं। इन्होंने हिन्दू धर्म के श्रद्धालुओं के मानव जीवन का नाश कर दिया। शास्त्राविधि विरूद्ध भक्ति साधना करवाकर भिखारी, चोर, डाकू, रिश्वतखोर, मिलावटखोर बनाकर छोड़ दिया। गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में स्पष्ट किया है कि जो साधक शास्त्राविधि त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है यानि जो भक्ति की साधना शास्त्रों में वर्णित नहीं है, उसे करता है तो उसे न तो सुख प्राप्त होता है, न उसे भक्ति की शक्ति यानि सिद्धि प्राप्त होती है तथा न उसकी गति यानि मुक्ति होती है। इसी कारण से सर्व साधक तन-मन-धन से झूठे गुरूओं द्वारा बताई शास्त्रा विरूद्ध साधना, दान-धर्म भी करते हैं। फिर भी न तो घर-परिवार में सुख, न कारोबार में बरकत (लाभ) जिसके लिए प्रत्येक व्यक्ति भगवान की साधना से अपेक्षा करता है। साधना शास्त्राविरूद्ध होने से परमात्मा की और से कोई लाभ नहीं मिलता। जिसकी पूर्ति के लिए चोरी, हेराफेरी, रिश्वत, ठगी, मिलावट आदि अपराध करने लग जाते हैं। कुछ समय पश्चात् नास्तिक हो जाते हैं। ऐसे हिन्दू समाज का बेड़ा गरक शास्त्रा ज्ञान से अपरिचित हिन्दू गुरूओं ने कर दिया। मेरे (लेखक-रामपाल दास के) पास शास्त्रों का यथार्थ ज्ञान है तथा शास्त्रोक्त साधना के यथार्थ स्मरण मंत्र हैं जो साधक को सुख यानि घर-परिवार में सुख, कृषि व कारोबार में बरकत (लाभ), आध्यात्मिक शक्ति (सिद्धि) तथा पूर्ण मोक्ष प्रदान करते हैं। इस पुस्तक ‘‘गरिमा गीता की’’ में आप जी को उन शास्त्रों में वर्णित यथार्थ साधना के मंत्रों की जानकारी पढ़ने को मिलेगी। शास्त्रों के अध्याय, श्लोक तथा पृष्ठ भी लिखे हैं जो आप अपनी संतुष्टि के लिए अपने शास्त्रों से मिलान करके जाँच सकते हो।
यदि कोई व्यक्ति (स्त्राी-पुरूष) उन मंत्रों को इस पुस्तक में पढ़कर जाप करेगा तो उसे कोई लाभ नहीं होगा। उन मंत्रों को मेरे से या मेरे द्वारा बताई दीक्षा की DVD के माध्यम से दीक्षा लेकर आजीवन मर्यादा में रहकर साधना करने से सर्व लाभ तथा पूर्ण मोक्ष मिलेगा।
श्रीमद्भगवत गीता चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) का सारांश है तथा यह पुस्तक ‘‘गरिमा गीता की’’ श्रीमद्भगवत गीता का यथार्थ सारांश है। प्रत्येक अध्याय से मक्खन निकालकर फिर उसको शुद्ध करके गीता रूपी गाय का घी बनाया है। आप जी इसे पढ़ें तथा गीता की गरिमा से यथार्थ रूप से परिचित होकर स्वयं तथा अपने परिवार को धन्य बनाऐं। मेरे से नाम दीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्त करें। विश्व के सर्व प्राणी एक परमेश्वर कबीर जी के बच्चे हैं यानि परमेश्वर द्वारा उत्पन्न आत्माऐं हैं जो काल ब्रह्म के लोक में जन्म-मरण तथा अनेकों कष्ट उठा रहे हैं। परमेश्वर कबीर जी चाहते हैं कि मेरी आत्माऐं मुझे अध्यात्म ज्ञान से पहचानें। फिर सत्य साधना करके सनातन परम धाम (सत्यलोक) में जाकर सदा सुखी जीवन जीऐं। उस परमेश्वर जी ने स्वयं यथार्थ भक्ति मंत्रों को बताया है जो सर्व शास्त्रों में प्रमाण मिला है। जिस कारण सत्य भक्ति की साधना की सार्थकता सिद्ध हुई है। मेरा निष्कर्ष है कि:-
जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा। हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।।
आप जी इस पुस्तक ‘‘गरिमा गीता की’’ में पवित्र गीता के दिव्य सार को पढ़ें तथा अन्य को पढ़ाऐं। भूलों को राह बताऐं। इससे बड़ा पृथ्वी पर कोई पुण्य का कार्य नहीं है। मेरे अनुयाई तथ्यों को आँखों शास्त्रों में देखकर आश्चर्यचकित हुए थे। सत्य को स्वीकार करके तुरंत झूठी साधना त्यागकर सत्य साधना की दीक्षा मुझ दास (रामपाल दास) से लेकर जीवन धन्य कर रहे हैं। साथ-साथ इस अद्वितीय यथार्थ अध्यात्म ज्ञान का प्रचार करके भूले-भटकों को सत्य मार्ग बताकर पुण्य के भागी बन रहे हैं। झूठे गुरूओं से प्रभावित भोली जनता के द्वारा दी जा रही परेशानियों को झेलते हुए प्रचार में लगे हैं। ये आपको अपना भाई-बहन मानते हैं। आपके कल्याण का उद्देश्य रखते हैं। लेखक का उद्देश्य भी मानव समाज का कल्याण करना है। आप जी मेरे द्वारा बताया अध्यात्म ज्ञान समझें। पूर्ण रूप से जाँच करें। फिर हमसे जुड़ें। मर्यादा में रहकर भक्ति करें। तब देखना आपको प्रत्यक्ष लाभ होता महसूस होगा। आप अपने बीते मानव जीवन के समय का व्यर्थ साधना से नष्ट होने का बहुत पाश्चाताप् करोगे। सत्य भक्ति मार्ग मिलने से परमेश्वर कबीर जी की शरण में आने के पश्चात् उन भक्तों-भक्तमतियों, बहनों-माईयों का कोटि-कोटि धन्यवाद करोगे जिन्होंने आप जी को घर बैठों को परमात्मा का सत्य ज्ञान व सत्य भक्ति संदेश पुस्तकों के माध्यम से पहुँचाया। फिर आप ऐसा अनुभव करोगे जैसे कोई मौत के मुख से निकलने पर सुरक्षित परंतु भय-सा महसूस करता है। विचार करेंगे कि हे परमात्मा कबीर जी! हमारा ऐसा कौन-से जन्म का शुभ कर्म फला। जिस कारण से आपकी शरण मिली। यदि यह तत्वज्ञान पढ़ने-सुनने को नहीं मिलता तो लुट-पिट जाते। हमारा अनमोल मानव जीवन नष्ट हो जाता। इसलिए आप जी अविलंब अपने निकट वाले हमारे नामदान केन्द्र पर आऐं और दीक्षा लेकर अपना कल्याण करवाऐं।
प्रार्थी-लेखक
(संत) रामपाल दास (महाराज)
सतलोक आश्रम, बरवाला
जिला-हिसार, हरियाणा (भारत)।