Important: From Shlok 4 to 20, there is description of the characteristics of those people who did not do scripture-based sadhna even in their previous human births. Then, after going in the births of various other life forms and hell etc and after enjoying the transitory happiness in heaven etc, when they again acquire a human body, then also, out of their nature, remain firm in the same kind of sadhna (religious practices) and vices.
DambhH, darpH, abhimaanH, ch, krodhH, paarushyam, ev, ch,
Agyaanm, ch, abhijaatasya, paarth, sampadam, aasureem ||4||
Translation: (Paarth) Oh Paarth! (dambhH) hypocrisy (darpH) arrogance (ch) and (abhimaanH) conceit (ch) and (krodhH) anger (paarushyam) harshness (ch) and (agyaanm) ignorance (ev) actually, all these (aasureem) demoniac (sampadam) attributes (abhijaatasya) characteristics of a person born with. (4)
Oh Paarth! hypocrisy, arrogance and conceit and anger, harshness and also ignorance – all these are the characteristics of a person born with demoniac attributes.
विशेष:- श्लोक 4 से 20 तक उन व्यक्तियों के लक्षणों का वर्णन है जो पहले कभी मानव शरीर में थे तब भी शास्त्रा विधि अनुसार साधना नहीं की। फिर अन्य योनियों व नरक आदि में तथा क्षणिक सुख स्वर्ग आदि का भोग कर फिर मानव शरीर में आते हैं तो भी स्वभाववश वैसी ही साधना व विकारों में आरुढ़ रहते हैं।
दम्भः, दर्पः, अभिमानः, च, क्रोधः, पारुष्यम्, एव, च,
अज्ञानम्, च, अभिजातस्य, पार्थ, सम्पदम्, आसुरीम्,।।4।।
अनुवाद: (पार्थ) हे पार्थ! (दम्भः) पााखण्ड (दर्पः) घमण्ड (च) और (अभिमानः) अभिमान (च) तथा (क्रोधः) क्रोध (पारुष्यम्) कठोरता (च) और (अज्ञानम्) अज्ञान (एव) वास्तव में ये सब (आसुरीम्) राक्षसी (सम्पदम्) सम्पदाके (अभिजातस्य) सहित उत्पन्न हुए पुरुषके लक्षण हैं। (4)