Na, mam’, dushkrtinH, moodaH, prpadhyante, naraadhmaH,
Mayya, aphrtgyaanaH, aasuram’, bhaavam’, aashritaH ||15||
Translation: (Mayya) dependent on the short-lived benefits obtained from the worship of Rajgun-Brahma, Satgun-Vishnu, and Tamgun-Shiv, who do not want to do any other worship i.e. by this Trigunmayi Maya (aphrtgyaanaH) those whose knowledge has been stolen away, who do not even do my i.e. Brahm-worship, who are only limited to these three gods, such (aasuram’ bhaavam’) demoniac nature (aashritaH) possessing (naraadhmaH) the lowest among men (dushkrtinH) evil-doers (moodaH) fools (mam’) me (na) not (prpadhyante) worship i.e. they keep doing sadhna of the three gunas [Rajgun-Brahma, Satgun-Vishnu, Tamgun-Shiv]. (15)
Those whose knowledge has been stolen away by this Trigunmayi Maya i.e. by being dependent on the short-lived benefits obtained from the sadhna of Rajgun-Brahma, Satgun-Vishnu, Tamgun-Shiv ji, who do not even do my i.e. Brahm-worship, who are only limited to these three gods, such individuals who have demoniac nature, who are lowest among men, the evil-doers, fools, do not worship me i.e. they keep doing worship of the three gunas (Rajgun-Brahma, Satgun-Vishnu, Tamgun-Shiv).
The meaning of Gita Adhyay 7 Shlok 12 to 15 is that those devotees who out of their nature, are dependent on the benefits obtained from the worship of the three gunas, Rajgun-Brahma Ji, Satgun-Vishnu Ji, and Tamgun-Shiv Ji, and whose knowledge has been stolen away by the bhakti of these three gods, those with demoniac nature, the lowest among men, who perform evil acts of bhakti which are opposite to the injunctions of the scriptures, fools, do not even worship me, Brahm. Gita Adhyay 7 Shlok 20 to 23 also have a continuous connection with these.
न, माम्, दुष्कतिनः, मूढाः, प्रपद्यन्ते, नराधमाः,
मायया, अपहृतज्ञानाः, आसुरम्, भावम्, आश्रिताः।।15।।
अनुवाद: (मायया) रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तमगुण शिव जी रूपी त्रिगुणमई माया की साधना से होने वाला क्षणिक लाभ पर ही आश्रित हैं अन्य साधना नहीं करना चाहते अर्थात् इसी त्रिगुणमई माया के द्वारा (अपहृतज्ञानाः) जिनका ज्ञान हरा जा चुका है जो मेरी अर्थात् ब्रह्म साधना भी नहीं करते, इन्हीं तीनों देवताओं तक सीमित रहते हैं ऐसे (आसुरम् भावम्) आसुर स्वभावको (आश्रिताः) धारण किये हुए (नराधमाः) मनुष्यों में नीच (दुष्कृतिनः) दूषित कर्म करनेवाले (मूढाः) मूर्ख (माम्) मुझको (न) नहीं (प्रपद्यन्ते) भजते अर्थात् वे तीनों गुणों (रजगुण-ब्रह्मा, सतगुण-विष्णु, तमगुण-शिव) की साधना ही करते रहते हैं। (15)
केवल हिन्दी अनुवाद: मायाके द्वारा अर्थात् रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तमगुण शिव जी रूपी त्रिगुणमई माया की साधना से होने वाला क्षणिक लाभ पर ही आश्रित हैं जिनका ज्ञान हरा जा चुका है जो मेरी अर्थात् ब्रह्म साधना भी नहीं करते, इन्हीं तीनों देवताओं तक सीमित रहते हैं ऐसे आसुर स्वभावको धारण किये हुए मनुष्यों में नीच दूषित कर्म करनेवाले मूर्ख मुझको नहीं भजते अर्थात् वे तीनों गुणों (रजगुण-ब्रह्मा, सतगुण-विष्णु, तमगुण-शिव) की साधना ही करते रहते हैं। (15)
भावार्थ - गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 का भावार्थ है कि जो साधक स्वभाव वश तीनों गुणों रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी तक की साधना से मिलने वाले लाभ पर ही आश्रित रहकर इन्हीं तीनों प्रभुओं की भक्ति से जिन का ज्ञान हरा जा चुका है वे राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए मनुष्यों में नीच, शास्त्रा विधि विरुद्ध भक्ति रूपी दुष्कर्म करने वाले मूर्ख मुझ ब्रह्म को भी नहीं भजते गीता अध्याय 7 श्लोक 20 से 23 का भी इन्हीं से लगातार सम्बन्ध है।