Chapter 7 Verse 23

Chapter 7 Verse 23

Antvat’, tu, falam’, teshaam’, tat’, bhavti, alpmedhsaam’,
Devaan’, devyajH, yaanti, mad’bhaktaH, yaanti, mam’, api ||23

Translation: (Tu) but (teshaam’) those (alpmedhsaam’) dim-witted people (tat’) that (falam’) fruit/reward (antvat’) perishable (bhavti) is (devyajH) those who worship gods (devaan’) gods (yaanti) go to and (mad’bhaktaH) matavlambi i.e. by the path of bhakti told by me (api) also (mam’) me (yaanti) attain. (23)

Translation

But that fruit of those dim-witted people is perishable. Those who worship gods go to gods and matavlambi, i.e. by the path of bhakti told by me, also come to me.

Meaning

The meaning of Gita Adhyay 7 Shlok 20 to 23 is that, that which is mentioned in Gita Adhyay 7 Shlok 12 to 15 that those whose knowledge has been stolen by the three gunas-(Rajgun Shri Brahma Ji, Satgun Shri Vishnu Ji, Tamgun Shri Shiv Ji)-like Maya i.e. those who worship the three gods, they, endowed with demoniac nature, lowest among men, evil-doers, fools, do not worship me, Brahm. In relation to this only, it is stated in Gita Adhyay 7 Shlok 20 to 23 that those whose knowledge has been stolen by the above-mentioned three gods, they by their nature worship those very gods with the aim of the fulfilment of their desires i.e. the giver of the knowledge of Gita is saying that they worship gods other than me. Whichever god a devotee worships, I only make his faith firm towards that god. That worshipper of the gods attains the fruit by the power granted by me alone to that god, but that fruit of those dim-witted i.e. foolish people is perishable. Those who worship gods go to gods. My devotee comes to me. The purport is that those who worship Brahma, Vishnu and Shiv or some other god, the fruit of the worship of those gods is perishable i.e. that worship is useless.


अन्तवत्, तु, फलम्, तेषाम्, तत्, भवति, अल्पमेधसाम्,
देवान्, देवयजः, यान्ति, मद्भक्ताः, यान्ति, माम्, अपि।।23।।

अनुवाद: (तु) परंतु (तेषाम्) उन (अल्पमेधसाम्) अल्प बुद्धिवालोंका (तत्) वह (फलम्) फल (अन्तवत्) नाशवान् (भवति) होता है (देवयजः) देवताओंको पूजनेवाले (देवान्) देवताओंको (यान्ति) प्राप्त होते है। और (मद्भक्ताः) मतावलम्बी (अपि) भी (माम्) मुझको (यान्ति) प्राप्त होते हैं। (23)

केवल हिन्दी अनुवाद: परंतु उन अल्प बुद्धिवालोंका वह फल नाशवान् होता है देवताओंको पूजनेवाले देवताओंको प्राप्त होते है। और मतावलम्बी अर्थात् मेरे द्वारा बताए भक्ति मार्ग से भी मुझको प्राप्त होते हैं। (23)

भावार्थ:- गीता अध्याय 7 श्लोक 20 से 23 तक का भावार्थ है कि जो गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 में कहा है कि तीनों गुण(रजगुण श्री ब्रह्मा जी, सतगुण श्री विष्णु जी, तम् गुण श्री शिव जी) रूपी माया द्वारा जिन का ज्ञान हरा जा चुका है अर्थात् जो तीनों देवताओं की साधना करते हैं वे राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच, दुष्कर्म करने वाले मूर्ख मुझ ब्रह्म की पूजा नहीं करते। इसी के सम्बन्ध में गीता अध्याय 7 श्लोक 20 से 23 में कहा है कि जिनका ज्ञान उपरोक्त तीनों देवताओं द्वारा हरा जा चुका है वे अपने स्वभाव वश उन्हीं देवताओं की पूजा मनोंकामना पूर्ण करने के उद्देश्य से करते हैं अर्थात् गीता ज्ञान दाता कह रहा है कि मेरे से अन्य देवताओं की पूजा करते है। जो भक्त जिस देवता की पूजा करता है उसकी श्रद्धा मैं ही उस देवता के प्रतिदृढ़ करता हूँ। उस देवताओं के पुजारी को भी मेरे द्वारा उस देवता को दी गई शक्ति से ही प्राप्त होता है। परन्तु उन मंद बुद्धि वालों अर्थात् मूर्खों का वह फल नाश्वान है। देवताओं के पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं। मेरे भक्त मुझे प्राप्त होते हैं। भावार्थ है कि जो ब्रह्मा विष्णु तथा शिव की पूजा या अन्य किसी देव की पूजा करते हैं उन देवताओं की पूजा का फल नाश्वान है अर्थात् वह पूजा व्यर्थ है।