BrahmbhootH, prsannaatma, na, shochti, na, kaankshti,
SamH, sarveshu, bhooteshu, madbhaktim, labhte, paraam ||54||
Translation: (BrahmbhootH) one who has become worthy of attaining God (prsannaatma) a yogi with cheerful mind (na) neither (shochti) grieves (na) nor (kaankshti) desires (sarveshu) all (bhooteshu) towards living beings (samH) equanimity of mind (paraam, madbhaktim) my kind of supreme scripture-based bhakti (labhte) attains. (54)
One who has become worthy of attaining God, a yogi with cheerful mind, neither grieves nor desires. With equanimity of mind towards all the living beings, he attains my kind of supreme scripture-based bhakti.
The meaning of this Shlok 54 is that by the first Brahm Gayatri Mantra given to a worshipper, all the chakras open up i.e. Kundalini Shakti is awakened. That worshipper becomes worthy of attaining God. That worthy person is given Om mantra of supreme bhakti of Brahm-Kaal. Om+Tat together form Satyanaam of two words. The path of complete salvation begins from this. Therefore it is mentioned in this Gita Adhyay 18 Shlok 54.
ब्रह्मभूतः, प्रसन्नात्मा, न, शोचति, न, काङ्क्षति,
समः, सर्वेषु, भूतेषु, मद्भक्तिम्, लभते, पराम्।।54।।
अनुावद: (ब्रह्मभूतः) परमात्मा प्राप्ति योग्य हुआ प्राणी (प्रसन्नात्मा) प्रसन्न मनवाला योगी (न) न (शोचति) शोक करता है (न) न (काक्षंति) आकांक्षा ही करता है ऐसा (सर्वेषु) समस्त (भूतेषु) प्राणियोंमें (समः) एक जैसा भाव वाला (पराम्,मद्भक्तिम्) मेरे वाली शास्त्रानुकूल श्रेष्ठ भक्ति को (लभते) प्राप्त हो जाता है। (54)
भावार्थ:-- इस श्लोक 54 का भावार्थ है कि जो प्रथम ब्रह्म गायत्राी मन्त्रा साधक को प्रदान किया जाता है जिस से सर्व कमल चक्र खुल जाते हैं अर्थात् कुण्डलनि शक्ति जागृृत हो जाती है वह उपासक परमात्मा प्राप्ति का पात्रा बन जाता है। उस सुपात्रा को ब्रह्म काल की परम भक्ति का मन्त्रा ओं (¬) दिया जाता है। ओम्$तत् मिलकर दो अक्षर का सत्यनाम बनता है। इससे पूर्ण मोक्ष मार्ग प्रारम्भ होता है। इसलिए इस गीता अध्याय 18 श्लोक 54 में वर्णन है।