Yoginaam’, api, sarveshaam’, mad’gaten, antaraatmna,
Shraddhaavaan’, bhajte, yaH, maam’, saH, me, yuktatamH, matH ||47||
Translation: (Sarveshaam’) all (yoginaam’) among yogis (api) also (yaH) he who (shraddhaavaan’) faithful devotee (mad’gaten) according to the bhakti-opinion given by me (antaraatmna) from inner soul (maam’) me (bhajte) worships (saH) that yogi (me) my (matH) according to opinion (yuktatamH) is engrossed in bhakti in true way. (47)
Amongst all the yogis also a faithful devotee who worships me from inner soul according to the opinion given by me, that yogi according to my opinion is engrossed in bhakti in true way.
A worshipper who has Tatvgyan (true spiritual knowledge), in reality, is a scripture-based worshipper i.e. yogi. He duly does jaap of Om naam of Brahm Kaal. The jaap of Om naam has to be done according to the rule. He relinquishes the earnings of jaap of my (Brahm’s) naam to me, Brahm, and then attains the Supreme/Complete God.
(End of Adhyay Six)
योगिनाम्, अपि, सर्वेषाम्, मद्गतेन, अन्तरात्मना,
श्रद्धावान्, भजते, यः, माम्, सः, मे, युक्ततमः, मतः।।47।।
अनुवाद: (सर्वेषाम्) सर्व (योगिनाम्) योगियों में (अपि) भी (यः) जो (श्रद्धावान) श्रद्धावान साधक (मत्गतेन) मेरे द्वारा दिए भक्ति मत अनुसार (अन्तरात्माना) अन्तरात्मा से (माम्) मुझको (भजते) भजता है (सः) वह योगी (मे) मेरे (मतः) मत अनुसार (युक्ततमः) यथार्थ विधि से भक्ति में लीन है। (47)
भावार्थ:- तत्वज्ञान प्राप्त साधक वास्तव में शास्त्राअनुकूल साधक अर्थात् योगी है। वह ब्रह्म काल का ओं (ॐ) नाम का जाप विधिवत् करता है ओं नाम का जाप विधिवत् करना है मेरे नाम की जाप कमाई ब्रह्म को त्याग देता है तथा फिर पूर्ण परमात्मा को प्राप्त हो जाता है।
(इति अध्याय छठा)