Chapter 17 Verse 23

Chapter 17 Verse 23

Important: - In the following Shloks 23 to 28, there is description of the attainment of the Purna Parmatma (Complete God) and for that a special detailed description is given in Gita Adhyay 8 Shlok 5 to 10 and 12-13, Adhyay 4 Shlok 34 and Adhyay 15 Shlok 1 to 4 and Adhyay 18 Shlok 61, 62, 64, 66.

Adhyay 17 Shlok 23

ॐ , Tat, Sat, iti, nirdeshH, brahmnH, trividhH, smrtH,
BraahmnaH, ten, vedaH, ch, yagyaaH, ch, vihitaH, pura ||23||

Translation: (ॐ) Om mantra of Brahm, (Tat) Tat - this is coded mantra of ParBrahm, (Sat) Sat - this is coded mantra of Purna Brahm (iti) in this way, this (trividhH) of three types (brahmnH) of rememberance of mantra of Purna Parmatma (nirdeshH) direction (smrtH) is said to be (ch) and (pura) in the beginning of nature (braahmnaH) the scholars (ten) that same (vedaH) based on Tatvgyan, Ved (ch) and (yagyaaH)  yagya etc (vihitaH) created. (23)

Translation

ॐ/Om mantra of Brahm, Tat - this is coded mantra of ParBrahm, Sat - this is coded mantra of Purna Brahm. In this way, there is direction of rememberance of three types of mantras of Purna Parmatma, and in the beginning of nature, based on that very Tatvgyan, the scholars created Vedas and yagya etc. They used to worship according to that.


विशेष:- निम्न श्लोक 23 से 28 तक पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति का विवरण कहा है तथा उसके लिए विशेष विवरण गीता अध्याय 8 श्लोक 5 से 10 व 12,13 अध्याय 4 श्लोक 34 व अध्याय 15 श्लोक1 से 4 व अध्याय 18 श्लोक 61,62,64,66 में विस्तृत कहा है।

अध्याय 17 का श्लोक 23

ॐ, तत्, सत्, इति, निर्देशः, ब्रह्मणः, त्रिविधः, स्मृृतः,
ब्राह्मणाः, तेन, वेदाः, च, यज्ञाः, च, विहिताः, पुरा।।23।।

अनुवाद: (ॐ) ओं मन्त्र ब्रह्म का (तत्) तत् यह सांकेतिक मंत्र परब्रह्म का (सत्) सत् यह सांकेतिक मन्त्र पूर्णब्रह्म का है (इति) ऐसे यह (त्रिविधः) तीन प्रकार के (ब्रह्मणः) पूर्ण परमात्मा के नाम सुमरण का (निर्देशः) आदेश (स्मृतः) कहा है (च) और (पुरा) सृृष्टिके आदिकालमें (ब्राह्मणाः) विद्वानों ने (तेन) उसी (वेदाः) तत्वज्ञान के आधार से वेद (च) तथा (यज्ञाः) यज्ञादि (विहिताः) रचे। उसी आधार से साधना करते थे। (23)

केवल हिन्दी अनुवाद: ओं मन्त्र ब्रह्म का, तत् यह सांकेतिक मंत्र परब्रह्म का, सत् यह सांकेतिक मन्त्र पूर्णब्रह्म का है। ऐसे यह तीन प्रकार के पूर्ण परमात्मा के नाम सुमरण का आदेश कहा है और सृृष्टिके आदिकालमें विद्वानों ने उसी तत्वज्ञान के आधार से वेद तथा यज्ञादि रचे। उसी आधार से साधना करते थे। (23)